Telegram कैसे बन गया आंतकवादियों का पसंदीदा ऐप? लाल किला ब्लास्ट में भी यहीं बना प्लान, प्राइवेसी के नाम पर शुरू..अब बैन की मांग!

Telegram कैसे बन गया आंतकवादियों का पसंदीदा ऐप? लाल किला ब्लास्ट में भी यहीं बना प्लान, प्राइवेसी के नाम पर शुरू..अब बैन की मांग!

दिल्ली के लाल किला कार ब्लास्ट में 10 लोगों की मौत के बाद एक बार फिर Telegram ऐप सुर्खियों में है. NDTV की रिपोर्ट के मुताबिक, संदिग्ध हमलावर डॉ. उमर मोहम्मद को Jaish-e-Mohammed (JeM) से जुड़ा बताया गया है. खबर के अनुसार, Telegram ग्रुप्स के जरिए विदेशी हैंडलर्स से संपर्क में था.

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सूत्रों के अनुसार, उमर और उसके दो साथी डॉक्टरों का एक “रेडिकल डॉक्टर्स नेटवर्क” था, जो Telegram पर ही प्लानिंग करता था. उसके दो सहयोगियों की गिरफ्तारी की खबर मिलने के बाद उसने घबराकर खुद को उड़ा लिया. यह घटना Telegram के उस डार्क साइड को उजागर करती है जो दुनिया भर की सुरक्षा एजेंसियों के लिए सिरदर्द बन चुका है.

साल 2013 में हुआ था लॉन्च

आपको बता दें कि Telegram की शुरुआत साल 2013 में Pavel और Nikolai Durov ने की थी. रूस में जन्मे इन भाइयों ने इसे प्राइवेसी, फ्री स्पीच और सुरक्षा पर केंद्रित बनाया. यह ऐप एक अरब से अधिक यूजर्स के साथ अब दुनिया के सबसे लोकप्रिय मैसेजिंग प्लेटफॉर्म्स में से एक है.

Telegram ने कई ग्लोबल लोकतांत्रिक आंदोलनों में अहम भूमिका निभाई है. यूक्रेन युद्ध के दौरान राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेन्स्की ने इसे संचार माध्यम बनाया था. हांगकांग और बेलारूस में प्रदर्शनकारियों ने सरकार-विरोधी अभियानों में इसका इस्तेमाल किया. लेकिन जिस प्राइवेसी ने पत्रकारों और एक्टिविस्ट्स को सुरक्षा दी, वही आतंकियों और अपराधियों के लिए भी एक शरणस्थल बन गई.

आतंकवादियों की पसंदीदा ऐप क्यों है Telegram?

Telegram के एन्क्रिप्टेड प्राइवेट चैट्स, पब्लिक चैनल्स, और कम मॉडरेशन ने इसे चरमपंथियों के लिए आदर्श बना दिया है. ISIS, Al-Qaeda, Hamas, Hezbollah और अब Jaish-e-Mohammed जैसे संगठन Telegram का इस्तेमाल प्रचार प्रसार, नए सदस्यों की भर्ती, और हमलों के समन्वय के लिए कर रहे हैं.

2015 में TechCrunch सम्मेलन में जब Telegram के संस्थापक Pavel Durov से आतंकवादी गतिविधियों के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा था “गोपनीयता का अधिकार हमारे लिए आतंकवाद से डरने से अधिक महत्वपूर्ण है.” बस दो महीने बाद ही पेरिस आतंकी हमला हुआ जिसमें 130 लोग मारे गए. जांच में सामने आया कि हमलावरों ने Telegram और WhatsApp के जरिए एक-दूसरे से संपर्क किया था.

कितना गहरा है यह नेटवर्क?

New York Times की एक विस्तृत जांच में Telegram पर मौजूद 16,000 से अधिक चैनलों के 32 लाख संदेशों का विश्लेषण किया गया. नतीजा चौंकाने वाला था. इसमें बताया गया कि लगभग 1,500 व्हाइट सुप्रेमेसिस्ट चैनल्स, हजारों समूह जो हथियार, ड्रग्स और फर्जी दस्तावेज बेचते हैं और कुछ चैनल जो 20 से अधिक देशों में नशीले पदार्थों की होम डिलीवरी ऑफर करते हैं.

Telegram ने इन पर एक्शन लेने का दावा किया, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि छोटे निजी चैनलों में यह गतिविधियां आज भी जारी हैं. Telegram का कहना है कि वह केवल न्यायालय के आदेश पर ही किसी का IP एड्रेस या फोन नंबर साझा करता है, वह भी केवल तभी जब आरोपी “आतंकी” साबित हो.

कंपनी के पूर्व सदस्य Axel Neff के मुताबिक अब तक ऐसा कोई मामला नहीं आया जहां Telegram ने किसी आतंकवादी का डेटा साझा किया हो. संस्थापक Pavel Durov ने 2024 में Fox News को बताया था कि Telegram सरकारों के साथ “सहयोग नहीं करेगा अगर वह हमारी वैल्यू के खिलाफ हो.” उन्होंने अमेरिकी संसद की Capitol Hill दंगों की जांच में भी सहयोग करने से इनकार कर दिया था.

भारत के लिए नई चुनौती

भारतीय जांच एजेंसियों के मुताबिक, लाल किला ब्लास्ट के आरोपी डॉक्टर Telegram के जरिए विदेशी आतंकियों से संवाद कर रहे थे. संदेह है कि यह पूरा मॉड्यूल पाकिस्तान में बैठे Jaish-e-Mohammed के ऑपरेटिव्स के निर्देश पर काम कर रहा था. एक वरिष्ठ अधिकारी ने NDTV को बताया कि Telegram अब दोधारी तलवार है एक तरफ यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मंच है, दूसरी ओर आतंकवादियों के लिए सुरक्षा कवच.

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Sudhanshu Shubham

Sudhanshu Shubham

सुधांशु शुभम मीडिया में लगभग आधे दशक से सक्रिय हैं. टाइम्स नेटवर्क में आने से पहले वह न्यूज 18 और आजतक जैसी संस्थाओं के साथ काम कर चुके हैं. टेक में रूचि होने की वजह से आप टेक्नोलॉजी पर इनसे लंबी बात कर सकते हैं. View Full Profile

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