गूगल वर्ष 2016 में प्रोजेक्ट लून पेश करने की तैयारी कर रहा है

गूगल वर्ष 2016 में प्रोजेक्ट लून पेश करने की तैयारी कर रहा है
HIGHLIGHTS

गूगल अपने प्रोजेक्ट लून का विस्तार भारत में भी करेगा।

गूगल की महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट लून वर्ष 2016 तक उपलब्ध होगी। प्रोजेक्ट लून के अंतर्गत, पृथ्वी की सतह से 20 किमी की ऊँचाई पर समतापमण्डल में यात्रा कर रहे गूगल इंटरनेट बीमिंग हीलियम बैलून के द्वारा सभी लोगों को किफायती इंटरनेट की सुविधा प्रदान करने की योजना बना रहा है। 

इसके साथ ही गूगल यह सेवा भारत में भी पेश करने की योजना बना रहा है। गुरुवार को नैसकॉम इंडिया लीडरशिप फोरम में बोलते हुए, मोहम्मद गाव्दत, वाईस प्रेसिडेंट ऑफ़ इनोवेशन, गूगल, ने कहा, “वर्तमान समय में 4.5 बिलियन से भी अधिक लोगों को इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध नहीं है, और यह एक ऐसी समस्या है, जिसे वृद्धिशील प्रौद्योगिकी के द्वारा नहीं सुलझाया जा सकता है, जिसके लिए आदर्श रूप से अकेले भारत में लगभग 200,000 दूरसंचार टावरों की आवश्यकता होगी है।"

 “वर्ष 2016 तक, हमारा विश्वास है कि हम वाणिज्यिक मोर्चे पर शुरूआत कर सकते है, जो हमें पृथ्वी के चप्पे-चप्पे पर किफायती दर पर इंटरनेट की सुविधा प्रदान करने में मदद करेगा। हम सम्पूर्ण विश्व में दूरसंचार सेवा प्रदाताओं, और सरकारों के साथ बहुत निकटता से काम कर रहे है, जिसमें भारत भी शामिल है, ताकि इसे वाणिज्यिक रूप से पेश कर सके, और हमने पहले ही दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों के आधें सरकारों से इसके लिए अनुमति प्राप्त कर लिया है,” गव्दत ने कहा।  

गूगल, हालांकि, ऑनलाइन तकनीक की दिग्गज कंपनी नहीं है, जो सभी लोगों को अकेले किफायती दरों पर इंटरनेट की सुविधा प्रदान करने के लिए नवीन तकनीकों के खोज में संलग्न है। माइक्रोसॉफ्ट ‘व्हाईट स्पेस टेक’, का अन्वेषण कर रहा है, जो दो टीवी चैनलों के बीच अनुप्रयुक्त स्पेक्ट्रम का उपयोग मुफ्त में कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए करता है। माइक्रोसॉफ्ट इस तकनीक को भारत में भी आजमाने की योजना बना रहा है। आगे पढ़ें: व्हाईट स्पेस टेक कैसे भारत में डिजिटल डिवाइड को पाटने में सहयोग कर सकता है। 

फेसबुक अविकसित क्षेत्रों में इंटरनेट का प्रसार करने के लिए ड्रोन, उपग्रहों और अन्य प्रौद्योगिकियों का विकास कर रहा है। सोशल नेटवर्किंग की दिग्गज कंपनी ने कहा कि अपने नए "कनेक्टिविटी लैब" परियोजना के लिए इसने नासा की जेट प्रोपल्सन प्रयोगशाला और एम्स रिसर्च सेंटर से एयरोस्पेस और संचार विशेषज्ञों को काम पर रखा है।

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