जेट लैग की समस्या और इससे निपटने के तरीके

जेट लैग की समस्या और इससे निपटने के तरीके
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अलग-अलग टाइम जोन में यात्रा करनेवालों के लिए अभिशाप है जेट लैग

नए वातावरण या नए टाइम जोन में जाने से हमारी बॉयोलॉजिकल बॉडी क्लॉक बिगड़ जाती है, जिसे ‘जेट लैग’ कहते हैं. जेट लैग से प्रभावित होने पर आपको नींद ना आना, थकान, भूख ना लगना या बेवक्त लगना और विचलित हो जाने जैसी दिकक्तों का सामना करना पड़ता है.

एयर और स्पेस मैगजीन के अनुसार, "जेट लैग" टर्म सबसे पहले फरवरी 1966 में किया गया था. जेट लैग सिंपल तथ्य से निकला है कि जेट विमान इतनी तेज़ी से यात्रा करते हैं कि आपके शरीर के रिदम को पीछे छोड़ देते हैं.

ये केवल पिछले कुछ दशकों में ही संभव हो पाया है कि इंसान अलग-अलग टाइम जोन में जल्दी-जल्दी पहुंच पाए. और हमें अभी भी इसे अडैप्ट यानि अपनाने का तरीका नहीं मिला है. जेट लैग के प्रभावों को दूर करने के लिए, यात्रियों ने कई उपाये किएं. पौधे लगाने और एक्यूप्रेशर अपनाने से लकेर वियाग्रा तक निगल कर इस परेशानी से उबरने की कोशिश की.  

चलिए जानें जब हम एक टाइम जोन से दूसरे टाइम जोन में छलांग लगाते हैं, तो वास्तव में हमारे शरीर का क्या होता है, और शोध से हमें इसे समझने और इससे उबरने में कैसे मदद मिलती है.

जेट लैग हमारे शरीर की इंटरनल क्लॉक में एक व्यवधान का परिणाम है. हमारे शरीर में मौजूद कोशिकाएं एक बायोलॉजिकल क्लॉक नियम के तहत काम करती हैं. यह क्लॉक एक तय समय के अनुसार काम करती है. जो सुबह और शाम की आशा करती हैं, और रक्तचाप से लेकर हर चीज को नियंत्रित करती हैं कि हमें कितनी भूख हैं, कब नींद आ रही है आदि. यह बायोलॉजिकल क्लॉक 24 घंटे पर ही सेट होती है.

हमारे दिमाग में एक "मास्टर क्लॉक" है, जो कि प्रकाश से हमारे संपर्क के प्रति संवेदनशील है और हमारे बॉडी में ऑर्गन्स और ऊतकों को निर्देशित करता है.ये सभी क्लॉक हार्मोन मेलेटोनिन द्वारा नियंत्रित होती हैं, जो मास्टर क्लॉक द्वारा उत्पन्न होती है. इससे जब अंधेरा होता है तो हमें नींद आती है, और जब हम सोते हैं तो ये हमारे शरीर का तापमान नियंत्रित करता है.

जब हम एक अलग टाइम जोन में उड़ान भरते हैं या नाइट शिफ्ट्स में काम करते हैं तो हमारे शरीर में मौजूद सभी इंटरनल क्लॉक सिंक से बाहर जाती हैं या इसे टेक्निकल टर्म में "डिसिनक्रोनाइज" कह सकते हैं. हमारे बॉडी में मौजूद हर क्लॉक फिर से एडजस्ट या समायोजित होने में कुछ अलग समय लेता.  इसी कारण हम बुरा या घबराहट महसूस करते हैं.

ज्यादातर लोगों को फिर से पूरी तरह से एडजस्ट होने में कुछ दिन लग जाते हैं. ये ना सिर्फ इस पर निर्भर करता है कि आपने कितने टाइम जोन क्रॉस किए हैं बल्कि ये यात्रा की दिशा पर भी निर्भर करता है.

माना जाता है कि पूर्व की ओर यात्रा के लिए समायोजन करना हमारे शरीर के लिए ज्यादा कठिन है. पूर्व दिशा की यात्रा करने पर पश्चिम दिशा के मुकाबले जेट लैग से उबरने में ज्यादा समय लगता है. चूंकि हमारे शरीर के इंटरनल क्लॉक्स (घड़ी) 24 घंटों की अवधि के अनुसार सेट होती है.  हमारा शरीर हर 24 घंटे पर सूर्य चक्र के साथ सिंक्रनाइज़ कर हर दिन क्षतिपूर्ति करता हैं. जब आप पश्चिम यात्रा करते हैं, तो आपको कई घंटों का लाभ मिलता है, और इस समायोजन के लिए आपके शरीर के पास अतिरिक्त समय होता है. वहीं पूर्व की यात्रा में दिन छोटा होता है, जो समायोजन को और अधिक मुश्किल बना देता है.

हमारे बॉयोलॉजिकल क्लॉक्स) को बदलना कितना संभव है. इस बारे में  वॉशिंगटन विश्वविद्यालय में जीव विज्ञान के प्रोफेसर होरोसिओ डे ला इगलेसिया कहते हैं, "जेट लैग का इलाज करने के लिए अब तक कोई सिल्वर बुलेट यानि कारगर उपाय नहीं है". आमतौर पर इससे राहत पाने के लिए कई तरह की स्ट्रैटजी को बनानी पड़ती है, जिसमें किसी निश्चित समय में प्रकाश के एक्सपोजर में ना आना, निश्चित समय में आराम और भोजन करना साथ ही एक निश्चित समय में चलना, दौड़ना और बहुत कम मात्रा में हार्मोन मेलाटोनिन का उपयोग शामिल है. 

प्रोफेसर साइमन आर्चर भी इस बात पर सहमति रखते है कि कम से कम सैद्धांतिक रूप से कम्बाइंड अप्रोच जेट लैग से निपटने में सहायक हो सकता है, लेकिन व्यवहार में ऐसा करना मुश्किल हो सकता है. इसके अलाव मेलाटोनिन हर देश में उपलब्ध नहीं है.

इन सभी रणनीतियों का उद्देश्य नए समय क्षेत्र में हमारे बायोलॉजिकल क्लॉक्स के समायोजन को तेज करना है. ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के ओफ्थल्मोलॉजी के नैफिल्ड प्रयोगशाला के स्टुअर्ट पीरसन ने कहा है कि पिछले 15 साल के कार्य के दौरान बायोलॉजिकल क्लॉक्स, प्रकाश इनपुट और जेट लैग को समझने की हमारी क्षमता में बढ़ोतरी हुई है. उन्होंने कहा कि मास्टर क्लॉक मस्तिष्क के हाइपोथैलेमस में होता है. हमार मैकेनिज्म क्लॉक जीन पर निर्भर करता है, इन जीनों को बदलने से जीव के 24 घंटे का व्यवहार भी बदल जाता है, चाहे वो इंसान हो, पक्षी हो या फिर कोई जानवर.

जापान में शोधकर्ताओं द्वारा पिछले साल प्रकाशित किए गए रिसर्च से पता चलता है कि बायोलॉजिकल क्लॉक को फिर से सेट करने में एक हार्मोन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पीयरसन कहते हैं कि हार्मोन आर्गेनिन वैसोप्रेशिन जेट लैग से बहुत कम प्रभावित होता है और टाइम शिफ्ट्स में तेजी से समायोजित होने में मदद करता है.

मेडिसिन के बिना भी बायोलॉगिकल क्लाक को समायोजित करने के तरीके हो सकते हैं। वैज्ञानिकों के एक अन्य समूह ने एंट्रेन (Entrain) नामक एक ऐप को डिज़ाइन किया है. जो गणितीय मॉडलिंग का उपयोग कर ये पता लगाने की कोशिश करता है कि हमारा शरीर एक टाइम जोन से दूसरे टाइम जोन में किस तरीके से जल्दी से एडजस्ट हो सकता है.

इसके लिए ऐप में यूजर्स को टाइमजोन टाइप करना होगा, जिसमें वो ट्रैवल कर रहे हैं, जिसके बाद ये ऐप कैल्कुलेट कर बताता है कि कब प्रकाश(लाइट) के एक्सपोजर में आना चाहिए और कब नहीं.  

शोधकर्ताओं का कहना है कि जेट लैग के प्रभाव को कम करने के यात्रियों के  लिए आसान तरीका है अपने दिन को दो भागों में विभाजित करना. एक भाग में जहां उन्हें ज्यादा से ज्यादा प्रकाश में रहना होगा और दूसरे भाग में उन्हें अंधेरे में रहने की कोशिश करनी चाहिए. इस अध्ययन के एक सहयोगी का कहना है कि ये जेट लैग से उबरने में ये सॉफ्टवेयर दूसरे उपायों की तुलना में काफी कारगर है. 

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