नेट न्युट्रेलिटी पर इतनी बहस क्यों

नेट न्युट्रेलिटी पर इतनी बहस क्यों
HIGHLIGHTS

क्या आप भी परेशान हो गए हैं, आखिर ये नेट न्युट्रेलिटी है क्या और इसपर इतनी बड़ी डिबेट क्यों छिड़ गई है. तो परेशान न हों यह लेख आपकी सभी समस्याओं का समाधान है.

अगर आप पिछले कुछ समय से सोशल नेटवर्किंग से जुड़े हैं तो आपके कुछ दोस्त आपसे नेट न्युट्रेलिटी पर आ रहे लेखों के बारे में बात कर रहे होंगे या उसका लिंक आपसे शेयर कर रहे होंगे. मैं यह समझ सकता हूँ कि आप भी उन्हें लोगों में से हैं जो इस मुद्दे को लेकर परेशान हो गए हैं आखिर यह है क्या और इससे हमपर क्या फर्क पड़ने वाला है. ऐसे ही कई सवाल आपके जहन में आ रहे होंगे. शायद कुछ सवाल इन सवालों से भी मेल खा सकते हैं. जो इस प्रकार हैं:

  • नेट न्युट्रेलिटी है क्या?
  • मैं क्यों इस मुद्दे को लेकर चिंतित रहूँ या जानने का प्रयास करूँ?
  • भले ही ज्यादातर लोग इसके पक्ष में हैं, पर उनका भी एक प्रतिकूल द्रष्टिकोण है?
  • यह तो एक अमेरिकन समस्या है इसका यहाँ भारत में क्या काम?

क्या है नेट न्युट्रेलिटी?

अगर नेट न्युट्रेलिटी को एक सिंगल लाइन में लिखा या बताया जाए तो शायद यह कुछ इस प्रकार होगी:

“नेट न्युट्रेलिटी के आधार पर जो भी डाटा नेट पर उपलब्ध है उसे सामान रूप से देखा जाना चाहिए.”

इसके अलावा एक परिभाषा यह भी हो सकती है जो आपको आसानी से इसके बारे में काफी कुछ समझा सकती है.

“नेट न्युट्रेलिटी से तात्पर्य जैसे मान लीजिये कुछ इन्टरनेट प्रोवाइडर कम्पनी (एयरटेल, रिलायंस आदि) जो आपके ब्रॉडबैंड और मोबाइल इंटरनेट कनेक्शंस के लिए जिम्मेदार हैं. उसे कुछ वेबसाइट्स, ऑनलाइन सर्विसेस और एप्स के पक्षपात पूर्ण व्यवहार नहीं करना चाहिए. इन आईएसपीज़ को किसी वेबसाइट्स, ऑनलाइन सर्विसेस या एप्स के साथ इस तरह का व्यवहार करने की आज़ादी नहीं देनी चाहिए”.

चलिए अब इसे गहराई से समझने के लिए इस परिभाषा को तोड़कर कर देखते हैं. क्या हल निकलता है इसका:

पक्षपातपूर्ण व्यवहार: इसका मतलब अब ये आईएसपीज़ किसी वेबसाइट्स, ऑनलाइन सर्विसेस या एप्स को भुगतान के द्वारा और अधिक आसन बनाने के विषय में सवाल नहीं कर सकते. सवाल तो दूर की बात है इसके आने के बाद हालत काफी बुरे होने वाले हैं. जैसे मान लीजिये एयरटेल फ्लिप्कार्ट से किसी तरह का कोई पैसा नहीं लेगा, तो साफ़ है कि एयरटेल के उपभोगता फ्लिप्कार्ट वेबसाइट को आसानी से और जल्दी लोड कर लेंगे. और जहां फ्लिप्कार्ट एप इस्तेमाल होगा वहां किसी भी डाटा पैक की आवश्यकता नहीं पड़ेगी.

भेदभाव: इसके अलावा, एक आईएसपी को यह भी स्वतंत्रता नहीं है कि वह किसी वेबसाइट्स, ऑनलाइन सर्विसेस या एप्स को दंड दें क्योंकि वह लिए कुछ भी अतिरिक्त भुगतान नहीं कर रहा है. पिछले ही उदहारण को लेते हैं, एयरटेल द्वरा फ्लिकार्ट को स्वतंत्रता देना स्नैपडील और अमेज़न के लिए गलत प्रभाव वाला हो सकता है. केवल इस लिए क्योंकि फ्लिप्कार्ट एयरटेल को पैसा देने वाला है. क्या यव व्यवहार गलत नहीं है. यह भेदभाव भविष्य में एक गंभीर रू लेने वाला है. हम देखेंगे कि बहुत से वेबसाइट्स, ऑनलाइन सर्विसेस या एप्स पीछे हो जायेंगे या पूरी तरह से ब्लाक हो जायेंगे केवल इसलिए कि वह उन्हें बनाये रखने के लिए किसी तरह का भुगतान नहीं कर रहे हैं. 

मैं क्यों इस मुद्दे को लेकर चिंतित रहूँ या जानने का प्रयास करूँ?

अगर आज इंटरनेट का इस्तेमाल को रूप ले चुका है तो नेट न्युट्रेलिटी आपको सीधे ही प्रभावित करने वाली है. साथ ही अगर ट्राई भी टेलकॉस और ISPs का इस मुद्दे को लेकर पक्ष लेती है, तो आप एक वेबसाइट या एप का इस्तेमाल करते समय बहुत से बदलाव देखने वाले है. और भविष्य में आपको यह सब देखने को मिल सकता है जैसे: आप देखेंगे कि वेबसाइट्स और सर्विसेज़ टुकड़ों में बंट जाने वाली है. उसी तरह जैसे आपका डीटीएच ऑपरेटर आपको चैनल्स ऑफर करता है. इस चल रहे मुद्दे को गरमराता देखते हुए कहा जा सकता है कि आपको कुछ वेबसाइट्स एवं सर्विसेज़ का इस्तेमाल करने के लिए अधिक भुगतान करना पडेगा, जो साफ़ तौर पर हम सब के साथ भेदभावपूर्ण रवैये को दर्शाता है. तो इसके लिए चिंतित होना लाज़मी सा नज़र आता है क्योंकि आने वाले समय में यह कयास लगाए जा रहे हैं कि मोबाइल इंटरनेट उपभोगताओं की संख्या में इजाफा होने वाला है.

साथ ही दूसरी ओर हम देखते हैं कि अगर किसी देश में नेट न्युट्रेलिटी नहीं है तो वहां बिना किसी अन्य भुगतान के (केवल आपके डाटा पैक को अगर छोड़ दें) तो हम देखते हैं कि आप बहुत से एप्स को जो बहुत ही पोपुलर ही क्यों न हो फ्री में इस्तेमाल कर सकते हैं.

फिर आप इस बहस में कहीं पर भी अपने आप को देखते हों, इस पक्ष में या उस पक्ष में, नेट न्युट्रेलिटी आपको सीधे तौर पर प्रभावित करती है और आपको इस विषय को लेकर चिंतित होना जरुरी हो जाता है.

भले ही ज्यादातर लोग इसके पक्ष में हैं पर उनका भी एक प्रतिकूल द्रष्टिकोण है?

जैसा कि हर एक बहस में होता ही है, कुछ लोग किसी मुद्दे को लेकर उसके पक्ष में होते हैं तो कुछ लोग विपक्ष में, यह अलग अलग लोगों की अलग अलग धारणा के कारण भी हो सकता है. और भले ही साड़ी दुनिया इसके पक्ष में क्यों न हो हमें इस मुद्दे को लेकर इसके दूसरे पहलु पर भी ध्यान देना चाहिए, साथ ही दूसरे पक्ष के अभाव में यह बहस बहस ही नहीं रहेगी और किसी नतीजे पर भी नहीं पहुँच पायेगी.

पर सबसे पहले हमें देख लेना चाहिए कि आखिर क्यों नेट न्युट्रेलिटी का बचाव किया जा रहा है:

  1. नेट न्युट्रेलिटी ने अभाव में आईएसपीज़ के लिए यह बहुत्र आसान है कि वह अपने उपभोगताओं की नेट इस्तेमाल करने की आदत को भुगतान के तराजू टेल रख सकता है. इसके साथ यह भी कर सकता है कि भिन्न भिन्न साइट्स के लिए नेट की भिन्न भिन्न गति हो सकती है. तो एयरटेल के लिए यह बहुत आसन है कि वह अपने उपभोगताओं को फ्लिप्कार्ट जैसी साइट को आसानी से बिना किसी अवरोध के चला सके, बाकी सभी साइट्स को पीछे छोड़कर, तो जो लोग इस प्रतिस्पर्धा में हैं (यानी फ्लिप्कार्ट को छोड़कर बाकी साइट्स) उनका क्या होगा…
  2. नेट न्युट्रेलिटी का काम यह देखना भी है कि वह नए खड़ी हो रही कंपनियों को बड़ी कंपनियों से प्रतिस्पर्धा करने का अवसर प्रदान करे. और अगर नेट न्युट्रेलिटी ऐसा नहीं करती तो बड़ी कंपनियां इस प्रतिस्पर्धा को तांक पर रखकर आईएसपीज़ को अधिक भुगतान करके अपने उपभोगताओं को बेहतर सेवाएं मुहैया करवा लेंगी. और जो लोग अभी अभी इस क्षेत्र में खड़े हो रहे हैं वो ऐसा नहीं कर पायेंगे. तो क्या यह सही दिखाई पड़ता है. क्या यह भेदभाव नहीं है…
  3. तो आजकल यह परिद्रश्य एक और झुकता नज़र आ रहा है. नेट न्युट्रेलिटी के अभाव में आईएसपीज़ बड़ी कंपनियों से पैसा लेकर अपना काम करना आरम्भ कर देंगी और साथ ही उनके रिश्तों में भी गहराई आएगी जिससे आने वाले समय में ऑनलाइन क्रिटिसिज्म के मामले में भी यह चुप्पी साध लेंगी. यह ऐसा ही हुआ कि चिट भी अपनी और पत भी.
  4. एक दूसरा परिद्रश्य यह भी दर्शाता है कि आने वाला समय में नेट न्युट्रेलिटी के बिना इंटरनेट एक ऐसा खिलोना बन जायेगी जिसके माध्यम से हम केवल अपनी पसंदी की ही वेबसाइट्स का पैकेज लेंगे और बाकी चीजें जाएँ भाड़ में, ठीक वैसा ही जैसा हम डीटीएच कनेक्शन में करते हैं. और अगर आप बिना किसी अवरोध के इन्टरनेट का इस्तेमाल करना चाहते है तो आपको यह आईएसपीज़ ज्यादा पैसा खर्च करने के लिए बाध्य कर सकते हैं.

5. साथ अगर हम एंटी नेट न्युट्रेलिटी की पद्दति को देखें तो यह और भयावह रूप ले सकता है अगर इसका हस्तक्षेप वीओआईपी सन्देश भेजने वाले एप्स में भी हों जाए, जैसे अगर व्हाट्सएप और वाइबर में भी. और यह सेवाएं सीधे तौर पर टेलकॉस को भी प्रभावित कर सकती है. कहा जा सकता है कि यह एप कम्पनियां भारत में अपने एप को चलने के लिए अपने आप को रजिस्टर करती हैं. तो साफ़ हैं कि यह कम्पनियां सरकार को पैसा देती हैं तो आप इन्हें इस्तेमाल करने में सक्षम नहीं है.

बहुत से पक्षों में से ये कुछ कुछ पक्ष थे जिनके द्वारा हम समझ सकते हैं कि क्यों नेट न्युट्रेलिटी से सम्बन्ध रखने वाले पहलुओं को निष्पक्ष रखना चाहिए. हालांकि जब हम नेट न्युट्रेलिटी के मुद्दे को लेकर चर्चा करते हैं, हमारी बहस का फोकस कहीं और चला जाता है, या कह सकते हैं उसका फोकस अलग मुद्दों की ओर अधिक चला जाता है. ट्राई ने हाल ही में एक कंसल्टेशन पेपर पब्लिश किया था, जिसमें कहा गया कि, ये वीओआइपी सेवाये, एप्स और वेबसाइट्स टेलकॉस जो इस सब के पीछे बहुत सारे पैसा खर्च करता है उसके द्वारा बनाये गए ढाँचे का पूरा लाभ उठाते हैं. यूँ तो यह बहुत लंबा पेपर है पर इस चित्र के माध्यम से भी आप आसानी से इसे समझ सकते हैं.

तथ्य यह है कि नेट न्युट्रेलिटी के समर्थन के क्रम में, आपको टेलकॉस पर भरोसा रखान होगा, जिसका कहना है इन वीओआइपी सेवाओं जैसे यूट्यूब जैसी वेबसाइट्स से बिना पैसे लिए, इन्हें अपने नुक्सान की भरपाई के लिए उपभोगताओं से अधिक पैसा लेना पड़ता है.

इन सभी आर्ग्यूमेंट्स को पीछे छोड़ते ही चलिए अब कुछ और पहलुओं की ओर नज़र करते हैं जो नेट न्युट्रेलिटी का विरोद्ध कर रहे हैं.


A graph from the TRAI policy paper that shows drop in SMS use.

तथ्य यह है कि नेट न्युट्रेलिटी के समर्थन के क्रम में, आपको टेलकॉस पर भरोसा रखान होगा, जिसका कहना है इन वीओआइपी सेवाओं जैसे यूट्यूब जैसी वेबसाइट्स से बिना पैसे लिए, इन्हें अपने नुक्सान की भरपाई के लिए उपभोगताओं से अधिक पैसा लेना पड़ता है.

 


A graph from the TRAI policy paper showing dropping growth of voice calls over mobile & increasing growth of VoIP. 

इन सभी आर्ग्यूमेंट्स को पीछे छोड़ते ही चलिए अब कुछ और पहलुओं की ओर नज़र करते हैं जो नेट न्युट्रेलिटी का विरोद्ध कर रहे हैं.

1. इन आईएसपीज़ का कहना है कि अगर इन्हें सम्पूर्ण रूप से यह सब मैनेज करने का मौक़ा दिया जाए तो यह अपने नेटवर्क की एफिशिएंसी को काफी हद तक बढ़ाने का दमख़म रखते हैं. इसके तात्पर्य है कि आईएसपीज़ ही इस बात का फैसला करेंगे कि कैसे इंटरनेट ट्रैफिक को किस तरह से बनाया जायेगा. तो इसे जो रोजाना के हैवी इंटरनेट यूज़र्स पर लाइट यूजर्स का कोई प्रभाव नहीं पडेगा. आईएसपीज़ का यह भी मानना है कि उन्हें एक बार ऐसा मौक़ा दिया जाना चाहिए, वह ऐसे नेटवर्क्स का निर्माण करेंगे जिससे आपदा कि स्तिथि में भी आसानी से मदद मिल सकेगी, और इसे जल्द ही किया जाना चाहिए. ऐसा करने से काफी जगह पर बहुत सी मदद मिल सकती है, समस्याएं हल हो सकती है. उदाहरण के लिए, जो कम्युनिकेशन का माध्यम अस्पतालों द्वारा आपदा की स्थिति में इस्तेमाल किया जाता है उसे भी दुरुस्त करने पर जोर दिया जाएगा.

2. इन आईएसपीज़ का यह कहना भी है कि एक ब्लैंकेट नेट न्युट्रेलिटी को अस्तित्त्व में लाने से सुरक्षा के खतरे, पायरेसी में बढ़ोत्तरी और साइबर क्राइम में मामलों में इजाफा हो जाएगा. इन आईएसपीज़ का यह भी कहना है कि वह इन्टरनेट को और अधिक बेहतर बनाने में सरकार की मदद केवल ही एक रूप में कर सकते हैं अगर उन्हें इस कार्य को मैनेज करने का कार्य दिया जाए.

3. नेट न्युट्रेलिटी को लेकर एक और विवाद यहाँ हमारे सामने आता है कि यह उन सरकारी संस्थाओं को अधिक शक्ति प्रदान कर रहा है जो इसे आगे लाने के लिए लड़ रही है. नेट न्युट्रेलिटी के कुछ कट्टर विरोधियों का तर्क है कि यह सही है कि लोगों कि प्राइवेसी को बनाये रखने और प्रतिस्पर्धा में शामिल होने के लिए किसी सरकारी संस्था का इसपर वर्चस्व होने कि बजाये इन आईएसपीज़ को ही इसे मैनेज करने का अवसर दिया जाए.

इसके बारे में कुछ कहना बहुत ही आसान है पर एंटी नेट न्युट्रेलिटी है इससे आगे की बात, क्या आप इस पहलु से सहमत नहीं है: आपको इन ISPs पर ही यकीं करना चाहिए क्योंकि यह हमेशा आपके भले की बात सोचते और करते हैं. अब चाहे आप इस विचार से सहमत हैं या नहीं, क्या आप बता सकते हैं कि आप अपने आप को इस मुद्दे को लेकर या इस बहस को लेकर कहाँ देखते हैं.

हालांकि यहाँ टेलकॉस सेवाओं का अपना एक पक्ष है कि वह इस मुद्दे को लेकर इसके विपक्ष में हैं. और भारत जैसे देश में यह बहुत मायने रखता है कि कौन किसी चीज़ का विरोध करता है और कौन नहीं. मैं ख़ास तौर पर Internet.org जैसे सेवा की बात कर रहा हूँ. जिसने ग्रामीण इलाकों में जाकर अपनी एक गहरी पहुँच बनाई है, जहां लोग केवल एक लक्ज़री लाइफ के बारे में बस कल्पना ही कर सकते हैं. Internet.org के अंतर्गत रिलायंस के उपभोग्क्ता लगभग 38 वेबसाइट्स को फ्री में एक्सेस कर सकते हैं. इनमें फेसबुक, फेसबुक मेसेंजर, विकिपीडिया, एनडीटीवी, आजतक, बीबीसी, क्रिकइन्फो, बिंग और ओएलएक्स मुख्य हैं. हाँ हैं सकते हैं कि इस लिस्ट में कुछ बड़ी वेबसाइट्स नहीं है, पर हम इस बात से मुंह नहीं फेर सकते कि ये सभी वेबसाइट्स काफी पोपुलर हैं. मैं ऐसा नहीं कह रहा कि जो लोग इंटरनेट को अफोर्ड नहीं कर सकते उन्हें यहाँ फ्री में ऐसी सुविधायें मिलनी चाहिए. मैं बस इतना ही कह रहा हूँ कि इंटरनेट.org जो सेवाएं दे रहा है. उनमें उपभोगता अपने पसंद की वेबसाइट्स को एक्सेस कर सकता है वो भी बिना किसी शुल्क के. यह अच्छा है पर हमें इससे जुड़े आर्थिक पहलु को भी देखना चाहिए. जब इंटरनेट.org द्वारा इंटरनेट की क्षमता को ग्रामीण इलाकों में बढ़ाया जा रहा है जागरूकता फ़ैल रही है. तो मैं इसके बारे में कुछ नहीं कह सकता है. और जब मैं इंटरनेट को इतनी आसानी से पा सकता हूँ तो कोई दूसरा क्यों नहीं, क्यों उसके साथ भेदभाव किया जा रहा है.

इस डिबेट के दो पहलु है एक तो नेट न्युट्रेलिटी सभी को इंटरनेट प्रदान कर रही है, बिना किसी रुकावट के यह ग्रामीण इलाकों में उन लोगों तक नेट पहुंचाने में सक्षम हैं जहां बिजली तक नहीं आती और दूसरी और इसका बड़े पैमाने पर विरोध हो रहा है. मीडियानामा में इसे लेकर काफी चर्चा हुई है.

यह तो एक अमेरिकन समस्या है इसका यहाँ भारत में क्या काम?

यह सही है कि सबसे पहले नेट न्युट्रेलिटी हमारे सामने अमेरिका में हुए एक डिबेट के माध्यम से आई थी. पर आज यह बहुत बड़े पैमाने पर हम तक पहुँच गई है, और सोचने पर मजबूर कर रही है कि आखिर ये सच में एक समस्या है या ऐसे ही इसे अपने फायदे के लिए हवा दी जा रही है. और जब से एयरटेल जीरो के बारे में बातें होनी शरू हुई है तब से यह मुद्दा और अधिक महत्त्पूर्ण हो गया है. भारतीय इंटरनेट प्रणाली अभी नई है और भी यह जरुरी है कि इसे एक ढांचागत रूप में चरों और फैलाया जाए, जिससे कि यह और अधिक खुली और लोकतान्त्रिक हो जाए. नेट न्युट्रेलिटी पर चल रही बहस भारत में एक बड़ा मुद्दा बन गया है. इंटरनेट नियंत्रण नीतिगत ढांचे का एक अभिन्न अंग है. और हम सब को इसे आगे बढ़ाने और इंटरनेट के उज्जवल भविष्य की ओर ध्यान देना चाहिए. हमें यह भी देखना चाहिए इंटरनेट इच्छुक लोगों तक पहुँच सके.

डिजिट नेट न्युट्रेलिटी के पक्ष में है और हम इसके दोनों ही पहलुओं को भली प्रकार से देख रहे हैं. और हम इसमें भी आपकी मदद करने वाले कि आप इस मुद्दे को लेकर क्या और कैसे करें, साथ ही आप अपने आप को इस मुद्दे को लेकर कहाँ देखते है. यह हमारे लिए एक महत्त्वपूर्ण बात है.

नोट: मीडियानामा ने एक सराहनीय काम किया है, इसने नेट न्युट्रेलिटी से जुडी बहस के सभी पहलुओं पर अपनी नज़र रखी है. आप भी इन पहलुओं को देख सकते हैं. इसके साथ ही आप ट्राई के कंसल्टेशन पेपर यहाँ पढ़ सकते हैं. नेट न्युट्रेलिटी पर मीडियानामा के निखिल से आप FAQ पूछ सकते हैं.

Nikhil Pradhan

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