नए साल की पार्टी पर संकट! 31 दिसंबर को Zomato, Swiggy और Blinkit की हड़ताल, 1 लाख वर्कर्स करेंगे ‘Log Out’, जानें वजह

नए साल की पार्टी पर संकट! 31 दिसंबर को Zomato, Swiggy और Blinkit की हड़ताल, 1 लाख वर्कर्स करेंगे ‘Log Out’, जानें वजह

क्या आप भी 31 दिसंबर की रात घर पर दोस्तों के साथ पार्टी करने का प्लान बना रहे हैं और सोच रहे हैं कि खाना या स्नैक्स ऑनलाइन मंगा लेंगे? अगर हां, तो आपको अपना प्लान अभी बदल लेना चाहिए. Zomato, Swiggy, Blinkit और Zepto जैसे प्लेटफॉर्म्स के जरिए न्यू ईयर का जश्न मनाने वालों को बड़ा झटका लग सकता है.

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देश भर के लाखों डिलीवरी वर्कर्स ने 31 दिसंबर, 2025 को राष्ट्रव्यापी हड़ताल का ऐलान किया है. यह हड़ताल साल के सबसे व्यस्त दिन होने वाली है, जब ऑनलाइन ऑर्डर्स की बाढ़ आ जाती है. तेलंगाना गिग एंड प्लेटफॉर्म वर्कर्स यूनियन (TGPWU) और अन्य संगठनों के नेतृत्व में हो रहे इस विरोध प्रदर्शन का मकसद गिग इकॉनमी की ‘काली सच्चाई’ को उजागर करना है.

हड़ताल का दायरा और प्रभाव

यह कोई छोटी-मोटी हड़ताल नहीं है. इसका असर फूड डिलीवरी से लेकर ई-कॉमर्स और क्विक कॉमर्स (10 मिनट डिलीवरी) तक सब पर पड़ेगा. इसमें Zomato से लेकर Swiggy, Blinkit, Zepto, Amazon और Flipkart के डिलीवरी पार्टनर्स शामिल हैं.

इसका नेतृत्व TGPWU (तेलंगाना गिग एंड प्लेटफॉर्म वर्कर्स यूनियन) और IFAT (इंडियन फेडरेशन ऑफ ऐप बेस्ड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स) कर रहे हैं. इन्हें महाराष्ट्र, कर्नाटक, दिल्ली-NCR, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु के स्थानीय यूनियनों का समर्थन प्राप्त है.

अनुमान है कि 1 लाख से अधिक डिलीवरी वर्कर्स 31 दिसंबर को ऐप्स से लॉग आउट कर देंगे या काम काफी कम कर देंगे. हड़ताल का सबसे ज्यादा असर मेट्रो सिटीज में दिखेगा, जिनमें दिल्ली, बेंगलुरु, पुणे, हैदराबाद, कोलकाता और छत्रपति संभाजीनगर शामिल हैं. टियर-2 शहरों में भी सेवाएं बाधित हो सकती हैं. यूनियंस का मानना है कि न्यू ईयर पर रिकॉर्ड ऑर्डर वॉल्यूम होता है, इसलिए यह समय कंपनियों को झुकाने के लिए सबसे उपयुक्त है.

वर्कर्स क्यों कर रहे हैं विरोध?

यूनियन के नेताओं का कहना है कि फूड डिलीवरी और क्विक कॉमर्स का विस्तार तो तेजी से हुआ है, लेकिन जमीनी स्तर पर काम करने वालों की हालत बदतर हो गई है.

एल्गोरिथम की तानाशाही: वर्कर्स का सबसे बड़ा दर्द ‘अपारदर्शी एल्गोरिदम’ है. उनका कहना है कि ऐप ही सब कुछ तय करता है-वेतन दर, प्रोत्साहन (Incentives), डिलीवरी टारगेट और पेनल्टी. यह सब बिना किसी स्पष्टीकरण या पूर्व सूचना के होता है. पारदर्शिता की कमी के कारण वे अपनी दैनिक आय का अनुमान नहीं लगा सकते.

10-मिनट डिलीवरी का जानलेवा दबाव: अल्ट्रा-फास्ट डिलीवरी मॉडल (जैसे 10 मिनट में डिलीवरी) के खिलाफ गुस्सा चरम पर है. यूनियन का तर्क है कि ये समय-सीमाएं सड़कों पर जोखिम भरे व्यवहार को प्रोत्साहित करती हैं और दुर्घटनाओं की संभावना बढ़ाती हैं. TGPWU के संस्थापक शेख सलाउद्दीन कहते हैं, “हम असुरक्षित ’10-मिनट डिलीवरी’ मॉडल, मनमाने आईडी ब्लॉकिंग, या गरिमा और सामाजिक सुरक्षा से इनकार को स्वीकार नहीं करेंगे.”

घटती आय और असुरक्षा: कंपनियां अक्सर अपने इंसेंटिव स्ट्रक्चर को बदल देती हैं, जिससे मासिक कमाई अनिश्चित हो जाती है. वर्कर्स को पिछले स्तर की आय बनाए रखने के लिए अब ज्यादा घंटे काम करना पड़ रहा है. इसके अलावा, उनके पास पेड लीव, हेल्थ कवर या पेंशन जैसी कोई सुविधा नहीं है.

शिकायत निवारण का अभाव: अगर किसी वर्कर की आईडी बिना कारण ब्लॉक कर दी जाए या पेमेंट अटक जाए, तो उनकी सुनने वाला कोई नहीं है. वर्कर्स का कहना है कि इन मुद्दों को जल्दी हल करने के लिए कोई प्रभावी प्रणाली नहीं है, जिससे वे अनुचित परिस्थितियों में काम करने को मजबूर हैं.

यूनियन का कड़ा रुख

शेख सलाउद्दीन ने स्थिति को “आधुनिक युग का शोषण” करार दिया है. उनका आरोप है कि जब भी वर्कर्स आवाज उठाते हैं, कंपनियां उनकी आईडी ब्लॉक कर देती हैं, पुलिस शिकायत की धमकी देती हैं या ‘एल्गोरिथम दंड’ देती हैं.

उन्होंने खुलासा किया कि 25 दिसंबर की हड़ताल में लगभग 40,000 वर्कर्स शामिल थे, जिससे कई शहरों में 60% डिलीवरी बाधित हुई थी. सलाउद्दीन ने कहा कि कंपनियों ने हड़ताल तोड़ने के लिए थर्ड-पार्टी एजेंसियों का इस्तेमाल किया और एक्स्ट्रा इंसेंटिव का लालच दिया, लेकिन वे वर्कर्स की वास्तविक मांगों को संबोधित करने में विफल रहीं.

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Sudhanshu Shubham

Sudhanshu Shubham

सुधांशु शुभम मीडिया में लगभग आधे दशक से सक्रिय हैं. टाइम्स नेटवर्क में आने से पहले वह न्यूज 18 और आजतक जैसी संस्थाओं के साथ काम कर चुके हैं. टेक में रूचि होने की वजह से आप टेक्नोलॉजी पर इनसे लंबी बात कर सकते हैं. View Full Profile

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