धरती के किसी भी कोने में बस 1 घंटे में होगी डिलीवरी, इस कंपनी ने बनाया ‘भविष्य’ का स्पेसक्राफ्ट, इमरजेंसी में साबित होगा वरदान
सोचिए, दुनिया के किसी भी कोने में बाढ़ या भूकंप जैसी आपदा आने पर, सिर्फ एक घंटे के अंदर वहां दवाइयां और जरूरी सामान पहुंचाया जा सके. यह किसी साइंस फिक्शन फिल्म की कहानी लगती है, है न? लेकिन अब यह हकीकत बनने जा रहा है. अमेरिका की एक स्टार्टअप कंपनी ‘इनवर्जन’ (Inversion) ने ‘आर्क’ (Arc) नाम का एक ऐसा क्रांतिकारी स्पेसक्राफ्ट बनाया है, जो अंतरिक्ष से धरती पर कहीं भी, सिर्फ एक घंटे में, सामान की डिलीवरी कर सकता है. यह टेक्नोलॉजी ग्लोबल लॉजिस्टिक्स और इमरजेंसी सेवाओं को हमेशा के लिए बदल सकती है.
Surveyक्या है ‘आर्क’ स्पेसक्राफ्ट और यह कैसे काम करता है?
आर्क लगभग 8 फीट लंबा और 4 फीट चौड़ा एक स्पेसक्राफ्ट है. इसे बिना पंखों या रनवे के पृथ्वी के वायुमंडल में उतरने के लिए डिजाइन किया गया है. यह अपने साथ 225 किलोग्राम तक का कार्गो ले जा सकता है.
यह काम कैसे करता है?
- लॉन्च: आर्क को एक रॉकेट द्वारा पृथ्वी की निचली कक्षा (Low Earth Orbit) में भेजा जाएगा, जहां यह 5 साल तक तैनात रह सकता है.
- कमांड: जब भी कहीं डिलीवरी की जरूरत होगी, तो ग्राउंड कंट्रोल से इसे कमांड दिया जाएगा.
- डिलीवरी: कमांड मिलते ही, यह 24,000 किमी/घंटा से भी तेज (Mach 20) रफ्तार से पृथ्वी के वायुमंडल में फिर से प्रवेश करेगा. इसका हीट शील्ड इसे 3,000 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान से बचाता है. वायुमंडल में आने के बाद, यह पैराशूट की मदद से किसी भी तय जगह पर, चाहे वह खुला मैदान हो या कोई दूर-दराज का इलाका, सॉफ्ट लैंडिंग कर सकता है.
इसका इस्तेमाल कहां होगा और भारत के लिए यह क्यों है खास?
इनवर्जन का कहना है कि आर्क का पहला इस्तेमाल 2026 में अमेरिकी सेना के ऑपरेशन्स के लिए किया जाएगा, जिसके बाद 2027 से इसे कमर्शियल और मानवीय सहायता के लिए भी उपलब्ध कराया जाएगा. सोचिए, यह आपदाग्रस्त क्षेत्रों में जीवन रक्षक दवाएं, वैक्सीन, भोजन, या ड्रोन जैसे महत्वपूर्ण उपकरण पहुंचाने में कितना कारगर साबित हो सकता है.
भारत जैसे देश के लिए, जहां बाढ़, भूकंप, या सीमा पर आपात स्थिति जैसी चुनौतियां आती रहती हैं, यह टेक्नोलॉजी एक गेम-चेंजर साबित हो सकती है. किसी भी आपदा की स्थिति में लगभग तुरंत मानवीय सहायता पहुंचाना संभव हो पाएगा, जिससे अनगिनत जानें बचाई जा सकेंगी.
चुनौतियों से भरी राह
हालांकि, यह कॉन्सेप्ट क्रांतिकारी है, लेकिन इसकी राह आसान नहीं है. सबसे बड़ी तकनीकी चुनौती वायुमंडल में फिर से प्रवेश के दौरान पैदा होने वाली अत्यधिक गर्मी को मैनेज करना है. इसके अलावा, लॉन्च की लागत भी बहुत ज्यादा है. इनवर्जन ने 2024 में SpaceX के एक मिशन पर ‘रे’ नाम का एक प्रोटोटाइप सफलतापूर्वक टेस्ट भी कर लिया है, जिससे आर्क के विकास का रास्ता साफ हुआ है.
Sudhanshu Shubham
सुधांशु शुभम मीडिया में लगभग आधे दशक से सक्रिय हैं. टाइम्स नेटवर्क में आने से पहले वह न्यूज 18 और आजतक जैसी संस्थाओं के साथ काम कर चुके हैं. टेक में रूचि होने की वजह से आप टेक्नोलॉजी पर इनसे लंबी बात कर सकते हैं. View Full Profile