कृत्रिम बुद्धिमत्ता को मानव की बराबरी करने में कई दशक लगेंगे: वैज्ञानिक

कृत्रिम बुद्धिमत्ता को मानव की बराबरी करने में कई दशक लगेंगे: वैज्ञानिक
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प्रौद्योगिकी अनुसंधान के क्षेत्र में अहम प्रगति के बावजूद कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) को मानव की अक्लमंदी की बराबरी करने में अभी दशकों लग जाएंगे।

प्रौद्योगिकी अनुसंधान के क्षेत्र में अहम प्रगति के बावजूद कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) को मानव की अक्लमंदी की बराबरी करने में अभी दशकों लग जाएंगे। ऐसा सीए टेक्नोलोजीज के वैज्ञाानिकों का मानना है, जो इस क्षेत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण अनुसंधान कार्य से जुड़े हैं। 

सीए टेक्नोलोजीज के उपाध्यक्ष विक्टर मुंटेस मुलेरो ने यहां बिल्ट टू चेंज समिट से इतर कहा, "सही मायने में सामान्य बुद्धि पर बहुत काम हो चुका है, मगर वैज्ञानिक समुदाय का मानना है कि वहां तक पहुंचने में अभी काफी वक्त लगेगा। इसमें कई दशक लग जाएंगे।"

सीए की एडवांस्ड डीप डाइव रिसर्च योजना का हिस्सा रहे मुलेरो ने कहा कि वहां तक पहुंचने में अभी लंबा रास्ता तय करना होगा और इस बीच बुद्धि के विभिन्न पहलुओं पर काफी काम करने होंगे, जबकि बहुत कुछ किया जा चुका है। 

डीप डाइव रिसर्च से जुड़ी वैज्ञानिक मारिया वालेज रोजाज ने कहा कि रोबॉटिक्स में पैदा होने वाली सुरक्षा संबंधी समस्याएं और उन सबके समाधान की जरूरत का मतलब है कि वैसी समस्याएं भविष्य में पैदा न हों। समय-समय पर कई टिप्पणीकारों ने कहा है कि मशीन में मानव बुद्धिमत्ता आने में एक दशक से कम दूरी रह गई है। वैज्ञानिक अब यह मानने लगे हैं कि मशीन बनाना आसान है, लेकिन उसमें नैतिकता, मानव अधिकार और सामाजिक संरचना का संपूर्ण समायोजन मुश्किल काम है।

इस संदर्भ में मुंटेस मुलेरो ने कहा कि वे लोग इस बात का पता लगा रहे हैं कि किस प्रकार एआई नैतिक व्यवहार करेगा, क्योंकि हाल ही में बुद्धि के कुछ सॉफ्टवेयर गलत साबित हुए हैं। मिसाल के तौर पर गूगल अनुवाद में अक्सर लिंग का बोध कराता है, खासतौर से जब आप तुर्की से अंग्रेजी में अनुवाद करते हैं और बताता है- ही इज एन इंजीनियर या शी इज अ नर्स, जबकि मूल पाठ में लिंग का कोई जिक्र ही नहीं है। इसी प्रकार लोगों के रंग को लेकर भेदभाव प्रकट होता है। 

उन्होंने कहा, "आप अपनी इच्छानुसार एआई से काम करनवा चाहेंगे, लेकिन कभी-कभी उसका व्यवहार अप्रत्याशित हो सकता है। एलेक्सा या सीरी टेलीविजन के ऑडियो से गैर-मानवीय निर्देश पाकर आपकी मर्जी के विपरीत काम कर सकता है।"

उन्हांेने कहा, "आप लैपटॉप में जैसे टाइप करेंगे वैसे ही मोशन डिटेक्शन के जरिए आपका पासवर्ड जानने के लिए एप्पल वाच को हैक किया जा सकता है।" 

न्याय और अधिकार के मसले से संबंधित मानवीय भाषा और संवेदना काफी महत्वपूर्ण होते हैं, इसलिए मशीन को इसपर विचार करने के लिए तैयार करने में समय लगेगा। इस संदर्भ में उन्होंने फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग के कथन का जिक्र किया, जिसमें उन्होंने कहा कि एआई के लिए नफरत की भाषा से ज्यादा कहीं वक्षाग्र की तस्वीर को पहचानना आसान है। 

मुंटेस मुलेरो ने कहा कि मसला उस समय जटिल हो जाता है, जब आप यह मान लेते हैं कि न्याय या सामाजिक नियमों की कोई एक परिभाषा नहीं होती है और वह देश के अनुसार बदल जाती है। उन्होंने कहा कि इस प्रकार की परिभाषा गणितीय रूप से अपने आप में एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। लेकिन एआई में न्याय सुनिश्चित करना मानवीय अधिकारों का मूल्यांकन करना और उससे एक बेहतर संसार बनाना अनुसंधानकर्ताओं का लक्ष्य है। 

कोबॉटिक्स यानी रोबॉटिक्स के साथ मानवीय सहयोग पर काम कर रहीं वेलाज रोजास ने कहा, "नए युग में जो रोबोट आ रहे हैं वे हमारी जगह लेने के बजाए हमसे परस्पर मिलकर काम करेंगे।" उन्होंने कहा कि एआई से आखिरकार रोबोट को मानवीय माहौल को समझने में मदद मिलेगी और अन्योन्यक्रिया से समस्याएं पैदा होंगी, क्योंकि मानव का स्वभाव काफी अप्रत्याशित होता है, जिसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। 

साथ ही, रोबोट को विचारों में अंतर करने के लिए सिखाने में काफी मशक्कत करनी पड़ेगी। उन्होंने कहा, "जब आप रोबोट को गंदगी साफ करने को कहेंगे तो वह फर्श पर फैली काफी को साफ करने के साथ साथ श्यामपट पर आपके द्वारा पूरे सप्ताह की गई बड़ी गणना को भी मिटा सकता है, क्योंकि वह भी उसे गंदा ही प्रतीत हो सकता है।"

उन्होंने कहा कि मानव अब कार्यो की पुनरावृत्ति करने वाले रोबोट से आगे बढ़कर ड्रोन जैसे नियंत्रित रोबोट से लेकर कुछ ऐसी बुद्धि वाली चीजों का इस्तेमाल करने लगे हैं, जो खुद बाधाओं को नजरंदाज कर पूरे कमरे में चल सकती हैं। उन्होंने कहा, "आखिकार हमें ऐसे रोबोट बनाने हैं, जो स्वत: व्यवहार करें और मानव को उनके कामों में सहयोग करें।"

अनुसंधान से जुड़े वैज्ञानिक स्टीवन ग्रीनस्पैन ने कहा कि आज दुनिया की सबसे बड़ी चिंता बनी सुरक्षा और निजता को लेकर सीए में काफी शोध हो रहा है। उन्होंने बताया कि यूरोप में हाल में पारित हुए जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेग्युलेश (जीडीपीआर) का न सिर्फ वहां की कंपनियों पर बल्कि यूरोप में कारोबार करने वाली दुनिया की हर कंपनी पर दूरगामी असर हुआ है। 

उन्होंने बताया कि सीए उन उत्पादों पर काम कर रहा है, जिनमें उनकी आवश्यकताएं संयोजित हैं, ताकि कंपनियों को जीडीपीआर की आश्यकताओं को समझने के लिए विशेषज्ञता की जरूरत नहीं हो। नए कानून के अनुसार व्यक्ति आंकड़ों का मालिकर होता है और वह यह तय कर सकता है कि किनसे इसे साझा किया जाना चाहिए और वह जब चाहे उसपर रोक लगा सकता है। 

उन्होंने कहा कि सेंधमारी पर रोक की समस्या है, क्योंकि पासवर्ड तोड़ा या हैक या चुराया जा सकता है। इस संदर्भ में उन्होंने कहा कि वे व्यवहार संबंधी सूचकों पर शोध कर रहे हैं, जिससे सॉफ्टवेयर का उपयोग करने वालों की पहचान आसानी से की जा सकती है। उन्होंने कहा, "हम यह पता लगा सकते हैं कि आप किस प्रकार टाइप करते हैं या मोबाइल के साथ आपका चलने का तरीका कैसा है, चाहे आप अपने व्यवहार में अनियित ही क्यों न हों।"

उन्होंने कहा, "चाहे आप लंच के लिए जाएं या कभी काम के कारण लंच छोड़ दें, अगर आप लॉगइन करने के बाद बाहर निकलें और कोई और आकर सिस्टम का उपयोग करे तो हमें पता चल सकता है।"

उन्होंने कहा कि यहां तक कि अगर आप किसी अन्य व्यक्ति को अपना सिस्टम इस्तेमाल करने देते हैं तो हम इसका भी पता लगा सकते हैं। उन्होंने बताया कि इन व्यवहार सूचकों का उपयोग करके वे 95 फीसदी से ज्यादा सही पहचान प्राप्त करने में सक्षम हुए हैं। उन्होंने बताया कि किसी व्यक्ति के दयालु से निर्दयी बनने के व्यवहार में परिवर्तन की पहचान करने को लेकर भी शोध चल रहा हैं। 

IANS

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