एक सवाल के जवाब में इतना पानी पी जाता है AI, मशीन के प्यास ने दुनिया को डराया, स्टडी में चौंकाने वाले खुलासे

एक सवाल के जवाब में इतना पानी पी जाता है AI, मशीन के प्यास ने दुनिया को डराया, स्टडी में चौंकाने वाले खुलासे

हम सब Artificial Intelligence (AI) की क्रांति का जश्न मना रहे हैं. ChatGPT से सवाल पूछना हो या Google Gemini से इमेज बनवाना, यह सब हमें बहुत सुविधाजनक और आसान लगता है. हमें लगता है कि यह सब तो बस ‘क्लाउड’ (Cloud) में हो रहा है, इसका धरती पर क्या असर होगा? लेकिन हाल ही में आई एक चौंकाने वाली रिसर्च ने इस भ्रम को तोड़ दिया है.

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क्या आप जानते हैं कि जिस AI को हम इतना स्मार्ट मान रहे हैं, वह असल में बेहद ‘प्यासा’ है? एक नई स्टडी ने खुलासा किया है कि AI इंडस्ट्री अब इतना पानी “पी” रही है, जितना पूरी दुनिया के इंसान मिलकर बोतलबंद पानी भी नहीं पीते हैं. यह रिपोर्ट न सिर्फ आंखें खोलने वाली है, बल्कि आने वाले जल संकट की ओर एक गंभीर इशारा भी है.

हाल ही में डच अकादमिक एलेक्स डी व्रीस-गाओ (Alex de Vries-Gao) के नेतृत्व में एक अध्ययन प्रकाशित हुआ है, जिसका शीर्षक है “डेटा सेंटर के कार्बन और पानी के फुटप्रिंट्स और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के लिए इसके क्या मायने”. इस रिसर्च के नतीजे बेहद डराने वाले हैं.

बोतलबंद पानी से भी ज्यादा खपत

अध्ययन का सबसे बड़ा खुलासा यह है कि AI उद्योग की पानी की खपत अब ग्लोबल स्तर पर खपत किए जाने वाले बोतलबंद पानी की कुल मात्रा से भी अधिक हो गई है. रिपोर्ट के अनुसार, AI सेक्टर द्वारा वार्षिक जल निकासी (Annual Water Withdrawal) उस 450 बिलियन (450 अरब) लीटर के आंकड़े को पार कर गई है, जो पूरी दुनिया की आबादी हर साल बोतलबंद पानी के रूप में इस्तेमाल करती है.

सोचिए, अरबों लोग जो पानी पीते हैं, उससे कहीं ज्यादा पानी सिर्फ इन मशीनों को ठंडा रखने में खर्च हो रहा है. यह वृद्धि बड़े लैंग्वेज मॉडल्स (LLMs) और जनरेटिव एआई टूल्स को पावर देने वाले विशाल डेटा सेंटर्स की वजह से हुई है.

आखिर इन्हें इतना पानी क्यों चाहिए?

अब सवाल उठता है कि डिजिटल मशीनों को पानी की क्या जरूरत? इसका जवाब है-गर्मी या हीट.

Nvidia के चिप्स: एआई के विकास के दो मुख्य चरण होते हैं-ट्रेनिंग इफेरेंस. इन चरणों के दौरान Nvidia जैसे एडवांस चिप्स का इस्तेमाल होता है. जब ये हाई-परफॉर्मेंस सर्वर काम करते हैं तो ये जबरदस्त गर्मी पैदा करते हैं.

अगर इस गर्मी को कंट्रोल न किया जाए, तो हार्डवेयर पिघल सकता है या फेल हो सकता है. हार्डवेयर की विफलता को रोकने के लिए, डेटा सेंटर वाष्पीकृत जल शीतलन प्रणाली या लिक्विड कूलिंग लूप्स पर निर्भर करते हैं. दुखद बात यह है कि इनमें से कई सिस्टम स्थानीय नगरपालिका की आपूर्ति या पहले से ही तनावग्रस्त भूमिगत जल स्रोतों (Aquifers) से पानी खींचते हैं. पानी को भाप बनाकर उड़ाया जाता है ताकि सर्वर ठंडे रह सकें.

एक चैट की कीमत: 500ml पानी

यह रिपोर्ट आपके और मेरे जैसे आम यूजर के लिए भी एक आईना है. उदाहरण के लिए, एक चैटबॉट (जैसे ChatGPT) के साथ एक बार की बातचीत (Exchange) डेटा सेंटर के स्तर पर वाष्पीकरण के माध्यम से 500 मिलीलीटर (आधा लीटर) पानी की “खपत” कर सकती है.

हालांकि, यह मात्रा इस बात पर निर्भर करती है कि सर्वर किस स्थान पर है और वहां का स्थानीय तापमान क्या है. अगर सर्वर किसी गर्म जगह पर है, तो उसे ठंडा रखने में और भी ज्यादा पानी लगेगा. यानी आपके 10-15 सवालों के बदले प्रकृति को कई लीटर पानी खर्च करने पड़ सकते हैं.

बिग टेक के वादे

अध्ययन इस बात पर भी प्रकाश डालता है कि टेक दिग्गज इन संसाधनों का प्रबंधन कैसे करते हैं, इसे लेकर एक बड़ा “ट्रांसपेरेंसी गैप” है. Microsoft, Google और Meta जैसी कंपनियों ने 2030 तक “Water Positive” (जितना पानी खर्च करेंगे, उससे ज्यादा वापस देंगे) बनने का संकल्प लिया है.

लेकिन एआई की तैनाती के साथ-साथ उनके वास्तविक उपभोग मेट्रिक्स (Actual Consumption Metrics) में तेजी से वृद्धि हुई है. वे जितना पानी बचाने का दावा कर रहे हैं, AI उससे कहीं ज्यादा तेजी से उसे खर्च कर रहा है. रिसर्चर्स का कहना है कि कंपनियां अपनी असली खपत को लेकर पूरी तरह पारदर्शी नहीं हैं.

भू-राजनीति और स्थानीय संघर्ष

यह संकट अब सिर्फ पर्यावरण तक सीमित नहीं है, बल्कि जियो-पॉलिटिक्स और स्थानीय बुनियादी ढांचे के केंद्र में आ गया है. कई डेटा सेंटर ऐसे क्षेत्रों में स्थित हैं जो पहले से ही पानी की कमी (Water Shortage) का सामना कर रहे हैं. अमेरिका के एरिज़ोना से लेकर स्पेन तक, जहां सूखा पड़ता है, वहां डेटा सेंटर्स भारी मात्रा में पानी खींच रहे हैं.

इसके कारण स्थानीय समुदायों और कृषि क्षेत्रों (Farmers) के साथ टकराव हो रहा है. किसान को खेती के लिए पानी नहीं मिल रहा, लेकिन पास के डेटा सेंटर को लाखों लीटर पानी मिल रहा है. शोध बताता है कि अगर हार्डवेयर की एफिशियंसी में मौलिक बदलाव नहीं आया या ऐसे ‘क्लोज्ड-लूप कूलिंग सिस्टम’ (जो वाष्पीकरण पर निर्भर न हों) की ओर संक्रमण नहीं हुआ, तो उद्योग का ‘वाटर फुटप्रिंट’ तेजी से बढ़ता रहेगा.

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Sudhanshu Shubham

Sudhanshu Shubham

सुधांशु शुभम मीडिया में लगभग आधे दशक से सक्रिय हैं. टाइम्स नेटवर्क में आने से पहले वह न्यूज 18 और आजतक जैसी संस्थाओं के साथ काम कर चुके हैं. टेक में रूचि होने की वजह से आप टेक्नोलॉजी पर इनसे लंबी बात कर सकते हैं. View Full Profile

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