‘असली’ कॉलर नेम से लेकर सिम-बाइंडिंग तक..साल 2026 में दिखने लगेंगे मोबाइल में ये बड़े बदलाव, साफ-सुथरा एक्सपीरियंस

‘असली’ कॉलर नेम से लेकर सिम-बाइंडिंग तक..साल 2026 में दिखने लगेंगे मोबाइल में ये बड़े बदलाव, साफ-सुथरा एक्सपीरियंस

साल 2025 काफी उथल-पुथल वाला रहा. खासतौर पर टेलीकॉम की दुनिया में हमनें काफी बदलाव देखें. ऐसा ही कुछ बदलाव अब साल 2026 में देखने को मिलेगा. इन बदलावों की चर्चा इसलिए भी ही रही है क्योंकि ऐसा कभी देखने को नहीं मिला. इसके अलावा इन बदलावों का असर आम यूजर्स पर पड़ेगा और उनको काफी फायदा होने वाला है.

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आपको बता दें कि भारत में साइबर फ्रॉड अब सिर्फ एक आर्थिक मुद्दा नहीं रहा, बल्कि यह एक सामाजिक संकट बन चुका है. लोगों की जिंदगी भर की कमाई एक झटके में गायब हो रही है. लेकिन अब, भारत सरकार और टेलीकॉम रेगुलेटर्स ने इस बीमारी का ‘स्थायी इलाज’ ढूंढ लिया है. हम सिर्फ छोटे-मोटे सुधारों की बात नहीं कर रहे, बल्कि 2026 तक भारत का पूरा कॉलिंग और मैसेजिंग सिस्टम बदलने वाला है.

सरकार दो बड़े ब्रह्मास्त्र ला रही है. इसमें CNAP (कॉलर नेम प्रेजेंटेशन) और SIM-Binding शामिल हैं. अब ठग न तो अपनी पहचान छिपा पाएंगे और न ही WhatsApp पर फेक अकाउंट चला पाएंगे. आइए विस्तार से जानते हैं कि ये नियम क्या हैं और 2026 तक आपका मोबाइल अनुभव कैसे बदलने वाला है.

क्यों जरूरी हैं ये बदलाव?

साइबर फ्रॉड अब सिर्फ पैसे खोने तक सीमित नहीं है. ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहां पीड़ितों ने अपनी पूरी जमापूंजी खो दी और हताशा में आत्महत्या जैसा चरम कदम भी उठाए. इनमें से बड़ी संख्या में घोटाले भारत के बाहर से ऑपरेट होते हैं, जिससे रिकवरी बेहद मुश्किल हो जाती है.

इस बढ़ते खतरे ने RBI, NPCI, TRAI और DoT (दूरसंचार विभाग) को एक साथ मिलकर काम करने पर मजबूर कर दिया है. पिछले एक साल में कई कदम उठाए गए हैं जैसे NPCI ने UPI पर ‘रिक्वेस्ट मनी’ फीचर को सीमित किया और TRAI ने प्रमोशनल कॉल्स के लिए अलग नंबर सीरीज जारी की. लेकिन अब बारी ‘गेम-चेंजर’ नियमों की है.

CNAP यानी कॉलर नेम प्रेजेंटेशन

यह फीचर ट्रूकॉलर (Truecaller) जैसा लग सकता है, लेकिन यह उससे कहीं ज्यादा भरोसेमंद और सरकारी होगा. इसका पूरा नाम Caller Name Presentation है. इसका उद्देश्य स्कैमर्स की सबसे आम चाल को विफल करना है “पहचान बदलना”. अक्सर ठग बैंक अधिकारी, पुलिस या रिश्तेदार बनकर कॉल करते हैं.

कैसे काम करेगा?

जब आपके फोन पर कोई कॉल आएगा, तो स्क्रीन पर सिर्फ नंबर नहीं, बल्कि उस कॉलर का वेरिफाइड नाम भी दिखाई. यह नाम किसी ऐप के डेटाबेस से नहीं, बल्कि उस KYC डेटा से उठाया जाएगा जो सिम कार्ड खरीदते समय जमा किया गया था. यानी अगर कॉलर ने सिम ‘राहुल शर्मा’ के नाम से ली है और वह आपको ‘बैंक मैनेजर’ बनकर कॉल कर रहा है, तो आपकी स्क्रीन पर साफ-साफ “राहुल शर्मा” लिखा आएगा.

TRAI ने टेलीकॉम कंपनियों को इसके पायलट प्रोजेक्ट्स शुरू करने को कहा है. अगर सब कुछ सही रहा, तो 2026 की शुरुआत तक यह सभी नेटवर्क पर एक डिफॉल्ट फीचर बन जाएगा. इससे यूजर्स को अनजान नंबर उठाने से पहले ‘विश्वास की एक अतिरिक्त परत’ मिलेगी.

SIM-Binding

यह नियम इंस्टेंट मैसेजिंग ऐप्स (जैसे WhatsApp, Telegram) पर होने वाले फ्रॉड को रोकने के लिए है. यह तकनीकी रूप से ठगों की कमर तोड़ देगा. कई स्कैम ऑपरेशन्स में अपराधी भारतीय नंबरों का इस्तेमाल करते हैं, भले ही वे विदेश में बैठे हों. वे एक बार सिम से WhatsApp अकाउंट बनाते हैं और फिर फिजिकल सिम को फेंक देते हैं. वे बिना सिम के वाई-फाई पर ऐप चलाते रहते हैं, जिससे उन्हें ट्रेस करना नामुमकिन हो जाता है.

सिम-बाइंडिंग से होगा साइबर स्कैम पर कंट्रोल

DoT ने मैसेजिंग प्लेटफॉर्म्स को निर्देश दिया है कि वे ‘सिम-बाइंडिंग’ तकनीक लागू करें. इसका मतलब है कि मैसेजिंग ऐप तभी काम करेगा जब उस नंबर का फिजिकल सिम कार्ड उसी डिवाइस में मौजूद और एक्टिव हो.

अगर यूजर फोन से सिम निकाल देता है या सिम बंद हो जाती है, तो उस नंबर से जुड़ा WhatsApp या Telegram अकाउंट भी काम करना बंद कर देगा. इससे स्कैमर्स के लिए एक ही सिम से अकाउंट बनाकर उसे फेंकना और फिर अकाउंट का दुरुपयोग करना असंभव हो जाएगा. अगर सिम फोन में नहीं है, तो ऐप नहीं चलेगा.

DoT ने नवंबर में प्लेटफॉर्म्स को 90 दिनों की अनुपालन खिड़की दी थी. हालांकि इसका इम्पलीमेंटेशन अलग-अलग हो सकता है, लेकिन 2026 तक यह एक स्टैंडर्ड प्रैक्टिस बनने की उम्मीद है.

इन दो बड़े बदलावों के साथ-साथ, RBI और TRAI एक डिजिटल सहमति प्रबंधन प्रणाली का भी परीक्षण कर रहे हैं. यह बैंक ग्राहकों को एक डैशबोर्ड देगा जहां वे देख सकेंगे कि उन्होंने अनजाने में मार्केटिंग मैसेज के लिए किसे परमिशन दे रखी है. वे जब चाहें, एक क्लिक में अपनी सहमति वापस ले सकेंगे. इससे स्पैम और मार्केटिंग कॉल्स पर लगाम लगेगी.

यानी साल 2026 तक, आपका मोबाइल अनुभव काफी साफ-सुथरा और सुरक्षित हो जाएगा. आपको पता होगा कि कौन कॉल कर रहा है, इसलिए फेक कॉल्स का जवाब देने की संभावना कम हो जाएगी.

मैसेजिंग ऐप्स पर अगर कोई भारतीय नंबर से मैसेज कर रहा है, तो आप आश्वस्त हो सकते हैं कि उसके फोन में वह सिम मौजूद है, जिससे उसे ट्रैक करना आसान होगा. आपकी स्क्रीन पर दिखने वाला नाम ‘वेरिफाइड’ होगा, न कि कॉलर द्वारा सेट किया गया कोई फर्जी नाम.

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Sudhanshu Shubham

Sudhanshu Shubham

सुधांशु शुभम मीडिया में लगभग आधे दशक से सक्रिय हैं. टाइम्स नेटवर्क में आने से पहले वह न्यूज 18 और आजतक जैसी संस्थाओं के साथ काम कर चुके हैं. टेक में रूचि होने की वजह से आप टेक्नोलॉजी पर इनसे लंबी बात कर सकते हैं. View Full Profile

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