Jai Bhim से लेकर Pink तक, इंसाफ की लड़ाई पर बनी ये 8 फिल्में बदल देंगी आपकी सोच, तीसरी वाली तो मस्ट-वॉच!

Jai Bhim से लेकर Pink तक, इंसाफ की लड़ाई पर बनी ये 8 फिल्में बदल देंगी आपकी सोच, तीसरी वाली तो मस्ट-वॉच!

फिल्में सिर्फ एंटरटेनमेंट नहीं होतीं, बल्कि समाज का आईना भी होती हैं। बहुत सी भारतीय फिल्मों ने जातिवाद, महिलाओं के साथ भेदभाव और समाज में फैले अन्याय जैसे मुद्दों को बेझिझक दिखाया है। ये फिल्में हमें सोचने पर मजबूर करती हैं और बदलाव के लिए जागरूक बनाती हैं। आइए जानते हैं ऐसी 8 दमदार फिल्मों के बारे में, जो समाज की सच्चाई सामने लाती हैं।

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Aakrosh

यह फिल्म एक आदिवासी युवक की चुप्पी और उसकी पत्नी की मौत के पीछे छुपे सच को दिखाती है। एक वकील जब उसकी मदद करता है, तो पता चलता है कि सिस्टम और सत्ता कैसे मिलकर गरीबों को दबाते हैं।

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Jai Bhim

यह फिल्म एक सच्ची घटना पर बनी है। इसमें एक गरीब आदमी को पुलिस झूठे केस में फंसा देती है। एक वकील उसकी मदद करता है और जातिवाद से भरी व्यवस्था से लड़ता है।

Pariyerum Perumal

यह कहानी एक दलित लड़के की है जो वकील बनना चाहता है। लेकिन उसे कॉलेज में जाति के कारण बार-बार अपमान सहना पड़ता है। फिल्म दिखाती है कि आज भी जातिवाद किस तरह लोगों के सपनों को रोकता है।

Parzania

यह फिल्म गुजरात दंगों पर आधारित है। एक पारसी परिवार अपने बेटे को दंगों में खो देता है और उसकी तलाश में जुट जाता है। फिल्म भावनाओं से भरी हुई है और दंगों की सच्चाई दिखाती है।

Sairat

यह एक लव स्टोरी है, जिसमें एक ऊँची जाति की लड़की और नीची जाति का लड़का प्यार में पड़ते हैं। लेकिन समाज उनका प्यार स्वीकार नहीं करता। यह फिल्म बताती है कि प्यार भी जातिवाद से सुरक्षित नहीं है।

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Masaan

यह फिल्म दो अलग-अलग कहानियों को दिखाती है—एक लड़की जो अपनी आज़ादी के लिए लड़ रही है और एक लड़का जो प्यार में जातिवाद का सामना करता है। दोनों कहानियाँ समाज के सख्त नियमों को सवालों के घेरे में लाती हैं।

Bandit Queen

यह फिल्म फूलन देवी की ज़िंदगी पर है। बचपन में अत्याचार सहने के बाद वह डकैत बनती हैं और बाद में संसद तक पहुँचती हैं। फिल्म एक महिला की लड़ाई, साहस और बदले की कहानी है।

Pink

इस फिल्म में तीन लड़कियाँ अपने हक के लिए लड़ती हैं जब कुछ लड़के उन पर गलत इल्ज़ाम लगाते हैं। फिल्म बताती है कि “ना” कहना भी एक अधिकार है और महिलाओं की आवाज़ सुनी जानी चाहिए।

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