सभी जानते है कि इंडिया-पाकिस्तान के बीच चल रहे तनाव में बॉर्डर पर भी टेंशन बनी हुई है। ऐसे में यह सामने आया है कि 7-8 मई, 2025 की रात को पाकिस्तान की ओर से भारत के कुछ सैन्य ठिकानों पर ड्रोन और मिसाइल आदि से हमले का प्रयास किया था, यह जानकारी एक आधिकारिक प्रेस विज्ञप्ति से मिलती है। हालांकि, इस हमले को भारत ने नाकाम कर दिया है। असल में, हमले को नाकाम करने का श्रेय भारत के Integrated Counter UAS Grid and Air Defence systems को जाता है।
हमने भारत के एयर डिफेन्स सिस्टम आदि के बारे में एक दूसरे लेख में विस्तार से चर्चा की है, जिसे आप यहाँ पढ़ सकते हैं।
अब अगर आप भी इस बारे में सोच रहे हैं कि आखिर भारत का Integrated Counter UAS Grid and Air Defence systems है क्या? तो आपको ज्यादा टेंशन लेने की जरूरत नहीं है। असल में, हम आपको इसके बारे में डीटेल में यहाँ आज बताने वाले हैं। आपको जानकारी दे ते हैं कि यह सिस्टम एक मल्टी-लेयर्ड टेक्नॉलजिकल फ्रेमवर्क है, जिसे खासतौर पर किसी भी अज्ञात ड्रोन, मिसाइल या हवाई हमले को ट्रैक करने और उसे हवा में ही मार गिरने के लिए डिजाइन किया गया है। इसका मतलब है कि अगर भारत की ओर हवा से कोई हमला किया जाता है, या धरती से कोई वार होता है तो यह सिस्टम उसका डटकर मुकाबले करने में सक्षम है। इसका कारनामा हम अभी हाल ही में इंडिया-पाकिस्तान के बीच चल रहे तनाव के दौरान देख चुके हैं। आइए अब इसके बारे में सम्पूर्ण डिटेल्स प्राप्त करते हैं।
अगर कुछ रिपोर्ट आदि पर गौर किया जाए तो इस सिस्टम को आप एक नेटवर्क के तौर पर देख सकते हैं, जो एडवांस्ड सेन्सर, रडार और इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेर टूल्स के साथ साथ काइनेटिक इन्टरसेप्टर्स से लैस होता है। इसे देश के अलग अलग हिस्सों में इस कारण से लगाकर रखा गया है, ताकि यह देश की सुरक्षा के लिए किसी भी अज्ञात गतिविधि पर नजर रख सके, किसी भी अनजान गतिविधि को ट्रैक कर सके और कोई भी शक होने पर रियलटाइम में किसी भी समस्या या हमले का सामना कर सके। इसका मतलब है कि इस सिस्टम से हमारा एयर स्पेस सुरक्षित है। इसे आप इंडिया के Iron Dome के तौर पर भी देख सकते हैं।
इस सिस्टम के कुछ मुख्य कंपोनेन्टस को आप यहाँ नीचे देख सकते हैं:
इस सिस्टम का सबसे बड़ा और जरूरी काम है, किसी भी हवाई हमले चाहे वह ड्रोन से किया जा रहा हो या मिसाइल आदि के माध्यम से, ट्रैक करना और उसे डिटेक्ट करना। इसके बाद यह सिस्टम किसी भी खतरे को टालने में सक्षम है। ऐसा यह सिस्टम इसलिए कर पाता है क्योंकि इसमें एडवांस्ड रडार अरु एल्क्ट्रो-ऑप्टिकल सेन्सर आदि मिलते हैं, जो एयरस्पेस को निरंतर स्कैन करते रहते हैं, इसकी रेंज लगभग लगभग 10KM या उससे ज्यादा है। यह सामने से आ रहे किसी भी ड्रोन की स्पीड, उसके ट्रेजेक्टरी और अन्य सभी फीचर आदि को पहचान सकता है।
SIGINT या फिर (Signal Intelligence) क्षमताएं भी एक अहम किरदार अदा करती हैं, इसके द्वारा या यह सिस्टम किसी भी ड्रोन कंट्रोल सिग्नल को इन्टर्सेप्ट और दुशमन के कम्यूनिकेशन को ऐनलाइज़ कर सकता है। इलेक्ट्रॉनिक जैमर्स को देखा जाए तो यह किसी भी हास्टाइल ड्रोन के कमांड और कंट्रोल लिंक्स को बाधिक करने का काम करते हैं। इसके अलावा इनका काम इस ड्रोन को कंट्रोल खो देने या क्रैश करने पर मजबूर करने में भी अहम भूमिका निभाता है।
हवाई खतरे का क्लासिफिकेशन अगला महत्वपूर्ण चरण या कदम है, जिसमें एआई और मशीन लर्निंग एल्गोरिदम सेंसर डेटा को प्रोसेस करके खतरों का ऑटोमैटिक रूप से क्लासिफ़ाई करने का काम करता है। यह प्रक्रिया सामान्य ऑब्जेक्ट और दुश्मन के ड्रोन या मिसाइलों के बीच अंतर कर फास्ट और सटीक रेस्पॉन्स को सक्षम बनाती है।
एक बार खतरे की पुष्टि हो जाने पर, प्रणाली लेयर्ड न्यूट्रेलाइजेशन ऑप्शन आदि का उपयोग करती है, जैसे कि हाई-एनर्जी लेजर सिस्टम, जो ड्रोन को बिना किसी कोलैट्रल नुकसान के निष्क्रिय या नष्ट कर सकते हैं। इसके अलावा पारंपरिक हथियार जैसे कि रैपिड-फायरिंग गन का उपयोग पास के हवाई खतरों से निपटने के लिए किया जाता है। अंततः, मिसाइल इंटरसेप्टर और वायु रक्षा प्रणालियाँ आने वाली मिसाइलों या बड़े हवाई प्लेटफार्मों को निशाना बनाती हैं।
C-UAS ग्रिड की प्रमुख विशेषता यह है कि इसे व्यापक वायु रक्षा प्रणाली में एकीकृत किया गया है, जहाँ पूरा ग्रिड सुरक्षित संचार नेटवर्क के माध्यम से जुड़ा होता है। यह विभिन्न इकाइयों—वाहनों पर लगे काउंटर-ड्रोन सिस्टम, स्थिर रडार और मिसाइल बैटरियों—के बीच सहज समन्वय की अनुमति देता है, जिससे एक रक्षा व्यवस्था सुनिश्चित होती है।
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