आजकल WhatsApp पर स्पैम कॉल और मैसेज कुछ ज्यादा ही बढ़ गए हैं. “कौन बनेगा करोड़पति” की लॉटरी से लेकर “बिजली बिल बकाया” वाले फर्जी संदेशों ने नाक में दम कर रखा है. लेकिन अब मेटा (Meta) और भारत सरकार ने इन डिजिटल ठगों के खिलाफ आर-पार की लड़ाई छेड़ दी है.
WhatsApp हर महीने भारत में लगभग 1 करोड़ अकाउंट्स को बैन कर रहा है. यह आंकड़ा किसी छोटे देश की आबादी के बराबर है. लेकिन सरकार को लगता है कि सिर्फ WhatsApp से बैन करना काफी नहीं है. अगर कोई नंबर WhatsApp पर ब्लैकलिस्ट हुआ, तो वह पूरे डिजिटल वर्ल्ड से गायब हो जाएगा.
WhatsApp अपनी मासिक अनुपालन रिपोर्ट (Monthly Compliance Report) में इन आंकड़ों का खुलासा करता है. ये वो नंबर हैं जो या तो बल्क मैसेजिंग करते हैं, स्पैम फैलाते हैं, या संदिग्ध गतिविधियों में लिप्त पाए जाते हैं. मेटा के अपने AI टूल्स और यूजर रिपोर्ट्स के आधार पर इन्हें पहचाना और ब्लॉक किया जाता है.
भले ही WhatsApp लाखों नंबर बैन कर रहा हो, लेकिन साइबर अपराध कम नहीं हो रहे. ठग हर दिन नई सिम खरीद लेते हैं या नए नंबरों का जुगाड़ कर लेते हैं. इसे देखते हुए भारत सरकार अब इस कार्रवाई का दायरा बढ़ाने पर विचार कर रही है.
द इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, सरकार इस बात से चिंतित है कि मौजूदा सिस्टम पूरी तरह से फ्रॉड रोकने के लिए अपर्याप्त है. अधिकारियों ने देखा है कि जब WhatsApp किसी मोबाइल नंबर को बैन करता है, तो अपराधी उस नंबर को फेंकते नहीं हैं. वे उस सिम का इस्तेमाल Telegram, Signal या अन्य मैसेजिंग ऐप्स पर अकाउंट बनाने के लिए करते हैं और वहां से अपनी ठगी जारी रखते हैं.
इस समस्या को जड़ से खत्म करने के लिए, सरकार व्हाट्सएप के साथ चर्चा कर रही है. प्रस्ताव यह है कि WhatsApp उन “ब्लैकलिस्टेड नंबरों” का डेटा सरकार या अन्य एजेंसियों के साथ शेयर करे.
इसका उद्देश्य यह है कि अगर कोई नंबर फ्रॉड के चलते WhatsApp पर बैन होता है, तो उसे सभी डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर ब्लॉक कर दिया जाए. यानी वह नंबर न तो टेलीग्राम पर चले, न ही किसी और ऐप पर. अपराधी सिर्फ ऐप बदलकर अपने स्कैम को जारी न रख सकें.
सरकार के पास उन नंबरों की जानकारी तो होती है जिन्हें सरकारी आदेश पर बैन किया जाता है, लेकिन WhatsApp अपने स्तर पर जिन करोड़ों नंबरों को बैन करता है, उनका डेटा सरकार के पास नहीं होता है. आपको बता दें कि WhatsApp हर महीने सिर्फ एक संख्या बताता है कि उसने इतने अकाउंट बैन किए, लेकिन वह यह नहीं बताता कि किन नंबरों को और किस सटीक कारण से बैन किया गया.
सरकार चाहती है कि इस डेटा को साझा किया जाए ताकि टेलीकॉम विभाग (DoT) और अन्य एजेंसियां उन सिम कार्ड्स की जांच कर सकें. क्या वे सिम फर्जी दस्तावेजों पर लिए गए थे? क्या वे किसी बड़े गिरोह का हिस्सा हैं? यह सब तभी पता चलेगा जब डेटा शेयर होगा.
WhatsApp और टेलीग्राम जैसे ऐप्स की एक बड़ी खामी (या फीचर) यह है कि एक बार जब आप फोन नंबर से अकाउंट सेट कर लेते हैं (OTP डालकर), तो उसके बाद आपको उस फोन में फिजिकल सिम कार्ड रखने की जरूरत नहीं होती. आप वाई-फाई पर ऐप चला सकते हैं.
इस वजह से पुलिस और जांच एजेंसियों के लिए इन अपराधियों को ट्रैक करना बहुत मुश्किल हो जाता है. सिम कहीं और होती है (या फेंक दी गई होती है) और अपराधी कहीं और बैठकर वाई-फाई के जरिए ठगी कर रहा होता है. सिम कार्ड कब जारी किया गया था और क्या उससे जुड़ी जानकारी (KYC) सही है, यह पता लगाना धोखाधड़ी से निपटने के लिए महत्वपूर्ण है. अगर WhatsApp ब्लैकलिस्टेड नंबर शेयर करेगा, तो उस सिम को ही नेटवर्क लेवल पर बंद किया जा सकता है.
इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय (MeitY) के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी, राकेश माहेश्वरी ने इस कदम के पीछे की मंशा समझाई. उन्होंने कहा कि जनता के लिए मासिक रिपोर्ट बनाने का उद्देश्य इन प्लेटफॉर्म्स की पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ाना था.
उन्होंने यह भी आगे जोड़ा कि यदि ऐसे मुद्दे सामने आते हैं जिनकी गहरी जांच की आवश्यकता है, तो सरकार के पास अधिक जानकारी मांगने का पूरा अधिकार है. सरकार का यह कदम यूजर सेफ्टी के लिए जरूरी है, लेकिन इसमें प्राइवेसी का ध्यान रखना भी एक चुनौती होगी.
अगर यह नियम लागू होता है, तो ईमानदार यूजर्स के लिए डिजिटल स्पेस ज्यादा सुरक्षित हो जाएगा. आपको कम स्पैम कॉल्स आएंगे और WhatsApp पर अनजान नंबरों से लॉटरी वाले मैसेज कम मिलेंगे.
हालांकि, इसका मतलब यह भी है कि अगर आपका नंबर गलती से WhatsApp द्वारा बैन कर दिया गया (जो कभी-कभी होता है), तो आपको उसे दोबारा चालू कराने या दूसरे ऐप्स पर इस्तेमाल करने में दिक्कत आ सकती है. इसलिए अपने नंबर का इस्तेमाल सावधानी से करें और बल्क मैसेजिंग से बचें.