Online Sale में हम सब ‘सबसे सस्ती डील’ ढूंढ रहे हैं. लेकिन क्या आपके साथ भी ऐसा हुआ है कि आपने ऑफर देखकर 500 रुपये का कोई आइटम कार्ट में डाला, और जैसे ही पेमेंट करने के लिए चेकआउट पेज पर पहुंचे, वह 550 या 600 रुपये का हो गया? ‘प्लेटफॉर्म फीस’, ‘हैंडलिंग चार्ज’, ‘प्रोटेक्ट प्रॉमिस फीस’ – न जाने कितने छिपे हुए चार्ज आखिरी मौके पर जोड़ दिए जाते हैं.
अगर आप भी इस ‘लूट’ से तंग आ चुके हैं, तो यह खबर आपके लिए है. सरकार ने इस ‘चोरी’ को ‘ड्रिप प्राइसिंग’ (Drip Pricing) का नाम दिया है. इसको Drip Pricing स्कैम भी कहा जा सकता है. अच्छी बात है कि सरकार ने इसके खिलाफ एक बड़ा कदम उठाया है. अब आप इसकी सीधी शिकायत कर सकते हैं.
ड्रिप प्राइसिंग ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला एक ‘डार्क पैटर्न’ है, जहां आपको प्रोडक्ट की पूरी कीमत एक बार में नहीं दिखाई जाती. जब किसी प्रोडक्ट की पूरी कीमत पहले से छिपाई जाती है और चेकआउट के दौरान बाद में अतिरिक्त शुल्क जोड़े जाते हैं, तो यह ‘ड्रिप प्राइसिंग’ का एक उदाहरण है.
यह एक मनोवैज्ञानिक चाल है. कंपनियां जानती हैं कि जब तक आप पेमेंट पेज तक पहुंचते हैं, तब तक आप उस प्रोडक्ट को खरीदने का मन बना चुके होते हैं और इन छोटे-छोटे चार्ज को देखकर आप ऑर्डर कैंसिल करने का झंझट नहीं उठाना चाहेंगे.
यह गोरखधंधा आजकल लगभग हर बड़ा प्लेटफॉर्म कर रहा है. ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स जैसे Flipkart और Amazon, साथ ही फूड और ग्रोसरी डिलीवरी प्लेटफॉर्म्स जैसे Swiggy और Zepto पर ऐसी प्रथाएं आम हैं. Flipkart आपसे ‘ऑफर हैंडलिंग फीस’, ‘पेमेंट हैंडलिंग फीस’, ‘प्रोटेक्ट प्रॉमिस फीस’, ‘पिक अप चार्ज’, और ‘प्लेटफॉर्म फीस’ जैसे कई नामों से पैसे वसूलता है.
Swiggy पर, ‘GST & Other Charges’ के तहत, ‘रेस्टोरेंट पैकेजिंग’ (जो रेस्टोरेंट में जाकर खाने पर नहीं लगता), ‘प्लेटफॉर्म फीस’, और ‘रेस्टोरेंट GST’ सब वसूला जा रहा है. अगर आपने गलती से 1 मिनट बाद भी ऑर्डर कैंसिल कर दिया, तो Swiggy और Zomato दोनों ही 100% कैंसलेशन फीस वसूल लेते हैं.
अब भारत के उपभोक्ता मामलों के विभाग (Department of Consumer Affairs) ने इस ‘ड्रिप प्राइसिंग’ के खिलाफ चेतावनी जारी की है. सरकार ने इसे ग्राहकों के साथ धोखा माना है और इससे निपटने के लिए एक हेल्पलाइन शुरू की है. अगर आपको भी कहीं ऐसा ‘डार्क पैटर्न’ या छिपी हुई कीमत दिखती है, तो आप तुरंत नेशनल कंज्यूमर हेल्पलाइन नंबर ‘1915’ पर कॉल करके मदद मांग सकते हैं.
सरकार का यह कदम बहुत अच्छा है, लेकिन असली सवाल अभी भी बाकी हैं. असली समस्या रिटेलर (ऑनलाइन प्लेटफॉर्म) के स्तर पर है, न कि उपभोक्ता के स्तर पर. शिकायत करने के बाद क्या होगा? क्या उपभोक्ता मामलों का विभाग इन कंपनियों पर कोई कार्रवाई करेगा? क्या उपभोक्ता को खरीदारी करनी चाहिए या नहीं? अगर उपभोक्ता खरीदारी करता है, तो क्या उसे रिफंड और मुआवजा मिलेगा? हमें यह देखना होगा कि शिकायतों के बाद इस मामले को कैसे आगे बढ़ाया जाता है.
फिलहाल, इस फेस्टिव सीजन में शॉपिंग करते समय, हमारी सलाह यही है कि आप सावधान रहें. किसी भी प्रोडक्ट की कीमत देखकर तुरंत खुश न हों, बल्कि पेमेंट करने से पहले फाइनल कार्ट वैल्यू को दो बार जरूर चेक करें. और अगर आपको भी कोई ऐसा छिपा हुआ चार्ज दिखे, तो ‘1915’ पर कॉल करके उसकी शिकायत जरूर करें.
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