भारत में Starlink, OneWeb और Jio की सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस का इंतजार थोड़ा और लंबा हो सकता है. दूरसंचार विभाग (DoT) ने इस सर्विस के लिए बने नियमों पर कुछ सवाल खड़े कर दिए हैं और टेलीकॉम रेगुलेटर TRAI से अपने सुझावों पर फिर से विचार करने को कहा है. सरकार को खासकर शहरी यूजर्स पर लगने वाली फीस और स्पेक्ट्रम के बेहद कम न्यूनतम शुल्क को लेकर चिंता है, जिससे इस सर्विस के लॉन्च में थोड़ी देरी हो सकती है.
डिजिटल कम्युनिकेशंस कमीशन (DCC) ने मंगलवार को सैटेकॉम स्पेक्ट्रम पर भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) की सिफारिशों पर चर्चा के लिए बैठक की. सूत्रों ने कहा कि बहु-मंत्रालयी शीर्ष निकाय ने TRAI से उसकी सिफारिशों के कुछ पहलुओं पर स्पष्टीकरण मांगने का फैसला किया है.
शहरी यूजर्स पर एक्स्ट्रा फीस: TRAI ने सुझाव दिया था कि शहरी इलाकों में सैटेलाइट इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले यूजर्स से हर साल 500 रुपये की अतिरिक्त फीस ली जाए. DoT को लगता है कि यह नियम लागू करना मुश्किल होगा. कौन सा इलाका शहरी है और कौन सा ग्रामीण, यह तय करना और फिर बिलिंग करना एक बड़ी चुनौती हो सकती है.
स्पेक्ट्रम का न्यूनतम शुल्क बहुत कम: TRAI ने सैटेलाइट कंपनियों के लिए सालाना न्यूनतम स्पेक्ट्रम शुल्क 3,500 रुपये प्रति मेगाहर्ट्ज रखने की सिफारिश की थी. DoT का मानना है कि स्पेक्ट्रम एक कीमती संसाधन है और यह रकम बहुत कम है. उन्हें डर है कि इतनी कम कीमत पर कंपनियां स्पेक्ट्रम खरीदकर रख लेंगी और उसका इस्तेमाल नहीं करेंगी, जिससे संसाधन बर्बाद होगा. सरकार चाहती है कि यह शुल्क ज्यादा हो ताकि कंपनियां स्पेक्ट्रम का सही इस्तेमाल करें.
आपको बता दें कि TRAI ने मई में अपनी सिफारिशें जारी की थीं. इनमें ऑपरेटर्स पर 4 प्रतिशत का सालाना रेवेन्यू शुल्क लगाने और सैटेलाइट ब्रॉडबैंड स्पेक्ट्रम को पांच साल के लिए आवंटित करने का सुझाव भी शामिल था.
जब तक ये नियम फाइनल नहीं हो जाते, इन कंपनियों का कमर्शियल रोल-आउट रुका रहेगा. Eutelsat OneWeb और Jio Satellite Communications को तो पहले ही लाइसेंस मिल चुके हैं, जबकि Amazon का Kuiper भी मंजूरी का इंतजार कर रहा है.
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