Covid-19 ने दुनिया भर के देशों को एक भयावह दौर में ला खड़ा किया है, आपको बता देते हैं कि इस महामारी यानी कोरोनावायरस के चलते पनप रही Covid-19 रोग ने आज दुनिया को अपनी चपेट के घेरे में ले लिया है, जहां हम कुछ समय पहले देख रहे थे कि इटली और आसपास के देशों में इसे ज्यादा नुकसान हो रहा है, वहां आज अमेरिका का नाम इस लिस्ट में सबसे ऊपर है। भारत में भी इस कोरोनावायरस बिमारी ने अपने एक बड़ी जनसंख्या को प्रभावित किया है, यहाँ तक ऐसा भी कहा जा सकता है कि हमारा पूरा देश इस Covid-19 महामारी की मार झेल रहा है। हालाँकि अब दुनियाभर के विज्ञानिकों ने इस रोग से या ऐसा भी कह सकते हैं कि इस संक्रमण को रोकने के लिए एंटीबॉडी के निर्माण के लिए अपनी जान झोंक दी है। आपको बता देते हैं कि वैज्ञानिकों ने ऐसे कई तरीकों को खोज लिया है या खोज रहे हैं, जो नॉवेल कोरोनावायरस से लड़ने में कारगर साबित हो सकते हैं। इनमें से एक ट्रीटमेंट की अगर बात करें तो कोरोनावायरस को लेकर काफी समय से Plasma Therapy का नाम सामने आ रहा है।
इस थेरेपी यानी Plasma Therapy में जो लोग इस महामारी यानी कोरोनावायरस यानी नॉवेल कोरोनावायरस की चपेट ससे बचकर निकल गए हैं, उनके द्वारा डोनेट किये गए ब्लड को लेकर एक एंटीबॉडी का निर्माण करते हैं। यह उन लोगों के ऊपर किया जाता है जो अभी भी इस कोरोनावायरस रोग से संक्रमित हैं। आज हम आपको बताने वाले हैं आखिर यह Plasma Therapy क्या है, इस महामारी के संक्रमण को रोकने या लोगों की जान बचाने में यह कितनी प्रभावी है, और किस तरह से थेरेपी काम करती है। आज हम आपको इस सभी के बारे में विस्तृत जानकारी देने वाले हैं।
Convalescent Plasma Therapy का लक्ष्य जो लोग भी इस संक्रमण से अपनी जान बचाने में कामयाब हुए हैं, उनके द्वारा यानी उनके ब्लड के एंटीबॉडी को इस्तेमाल करके दूसरे लोगों की जान बचाना है। इस थेरेपी के माध्यम से उन लोगों को इम्यून करना भी है जो कोविड-19 रोग के कारण हाई रिस्क पर हैं, जैसे स्वास्थ्यकर्मी, मरीजों के परिवार के लोग और अन्य सभी लोग जो हाई रिस्क पर हैं।
इस थेरेपी का कांसेप्ट बड़ा ही साधारण है, यह उन लोगों की एंटीबॉडी क्षमता को उनके ब्लड के द्वारा इस्तेमाल करना है, जो इस रोग से बच निकलें हैं। यह इसलिए भी किया जा रहा है ताकि अन्य लोगों को जो इस बिमारी के कारण हाई रिस्क पर हैं, उन्हें प्रोटेक्ट किया जा सके। हमने भारत में देखा है कि जो लोग इस बिमारी से ठीक होकर निकल रहे हैं, उनसे ब्लड डोनेट करने के लिए कहा जा रहा है, और वह ऐसा कर भी रहे हैं. यह एक ऐसी थ्योरी है, जैसे आपको साधारण शब्दों में बताते हैं कि, मान लीजिये आपको कोरोनावायरस संक्रमण हो गया है, अब आप 14 दिन के बाद अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारण कोरोना की चपेट से निकल आये हैं, और अपने घर पर सुरक्षित हैं, तो आपके ब्लड के एंटीबॉडी को दूसरे पीड़ित लोगों के अंदर डाला जाता है, ताकि उस रोगी को भी उस क्षमता से बचाया जा सके जैसे आप बचे हैं।
प्लाज्मा थेरेपी उस इन्फेक्टेड व्यक्ति की जब वह कोविड-19 महामारी से पीड़ित था उस दौरान विकसित हुए एंटीबॉडी का इस्तेमाल करती है। यह एंटीबॉडी एक मरीज में कोरोनावायरस रोग के कारण या इस दौरान उसकी बॉडी द्वारा इसके नेचुरल इम्यून रेस्पोंस के कारण निर्मित होती हैं। इसी कारण उस व्यक्ति के शरीर ससे कोरोनावायरस का प्रभाव कम होने लगता है।
अब जैसे ही यह मरीज ठीक हो जाता है, यह अपना ब्लड डोनेट करता है, अब इसके द्वारा डोनेट किये गए ब्लड के एंटीबॉडी को दूसरे मरीज के शरीर में डाला जाता है, ताकि वह भी इस इम्यून का फायदा ले सके और चंगा हो सके। हालाँकि इके पहले इस ब्लड में अन्य रोगों जैसे हेपेटाइटिस B, C और HIV को भी जांचा जाता है। अब अगर इस ब्लड को सुरक्षित पाया जाता है, तोही इस ब्लड में से ‘प्लाज्मा’ को लिया जाता है। इसी से दूसरे मरीज का इलाज किया जाता है।
जहां हम देख रहे हैं कि प्लाज्मा थेरेपी ससे लोगों की जान को बचाया जा सकता है, हालाँकि इमे कुछ रिस्क भी छिपे हैं, जो हम आपको यहाँ बता देना चाहते हैं।
इस थेरेपी में किसी भी कारण से एक एक रोगी की समस्या दूसरे रोगी में जाने की संभावना रहती है। इसके अलावा कुछ लोगों पर इ थेरेपी का असर नहीं होती है, और वह उसके शरीर में इस समस्या को बढ़ा भी सकती है। ऐसा भी हो सकता है कि यह इम्यून सिस्टम पर हमला करे। हालाँकि अभी इस ओर ज्यादा ध्यान न देकर हमें कोरोनावायरस से बचने के प्रबल उपायों को तलाश करना ही होगा।