आजकल स्मार्टफोन हमारी जिंदगी का इतना जरूरी हिस्सा बन चुका है कि हम अक्सर यह मान बैठते हैं कि फोन बंद करते ही वह पूरी तरह एंड हो जाता है। लेकिन आधुनिक फोनों की तकनीक इतनी जटिल है कि पावर बटन दबाकर स्क्रीन ब्लैक हो जाना इस बात की गारंटी बिल्कुल नहीं है कि फोन सच में बंद हुआ है। हाल ही में एक वेब सीरीज़ The Family Man Season 3 के एक सीन में दिखाया गया कि फोन बंद है, लेकिन फिर भी बैकग्राउंड में डेटा किसी अन्य को सेन्ड कर रहा है। लोगों ने इसे पहले तो मनोरंजन समझकर छोड़ दिया, लेकिन साइबर सिक्योरिटी विशेषज्ञों ने इस पर गंभीर चिंता जताई, क्योंकि ऐसा होना वास्तव में संभव है, बशर्ते फोन में पहले से किसी हाई-ग्रेड स्पाइवेयर को डाल दिया गया हो, अगर ऐसा नहीं है तो फोन बंद होने की स्थिति में बंद ही हो जाता है।
असल में स्मार्टफोन ‘बंद’ होने पर भी कई इन्टर्नल चिप्स थोड़े-बहुत एक्टिव रहते हैं। इनमें बेसबैंड प्रोसेसर, लो-पावर GPS यूनिट, ब्लूटूथ मॉड्यूल और कुछ सिक्योरिटी सब-सिस्टम शामिल हैं। ये कंपोनेन्ट बहुत कम ऊर्जा पर चलते हैं और यही कारण है कि फोन को पूरा बंद कर देना हमेशा संभव नहीं होता। अगर फोन में पहले से कोई एडवांस्ड स्पाइवेयर इंस्टॉल हो चुका हो, तो वह शटडाउन प्रक्रिया को हाईजैक करके एक तरह का ‘फेक शटडाउन’ दिखा सकता है, यानी यूज़र को लगे कि फोन बंद हो गया है जबकि इन्टर्नल लेवल पर यह बंद होता ही नहीं है।
इस स्थिति में फोन की स्क्रीन ऑफ हो जाती है, साउन्ड और वाइब्रेशन बंद हो जाती है, इस बाद फोन ऐसा व्यवहार करने लगता है जैसा कि किसी फोन को बंद करने पर करना चाहिए, लेकिन अंदर से वह लो-पावर मोड में काम करते हुए आसपास की आवाज़ें सुनता राहत है, लोकेशन को ट्रैक कर सकता है, ब्लूटूथ और WiFi सिग्नल स्कैन कर सकता है और यूजर की सभी गतिविधियों पर नजर रख सकता है। इसके बाद यह रिकॉर्ड किए गए डेटा फोन के ऑन होते ही दोबारा इंटरनेट मिलने पर सर्वर पर इस डेटा को भेजना शुरू कर देता है। इस तकनीक का इस्तेमाल कई देशों की खुफिया एजेंसियां, निगरानी प्रणालियाँ और कुछ प्राइवेट साइबर रिकॉर्ड रखने वाली कंपनियां कर चुकी हैं, जैसे Pegasus, Predator, Hermit और अन्य हाई-एंड स्पाइवेयर, इस काम के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं।
असल में, ये तो नहीं पता चल पाया है कि आखिर श्रीकांत तिवारी के फोन में किस स्पाईवेयर को डाला जाता है, हालांकि, उसकी टीम के एक साइबर एक्सपर्ट ने उसे इतना जरूर बताया कि उसका फोन कॉम्परोमाइज़ हो चुका है, इस कारण से उसे अपना फोन बदल देना चाहिए, ऐसा ही कुछ श्रीकांत तिवारी के साथ के साथ भी होता है। फोन जब तक चालू होता है तब तक तो सही है, वह सिंगल भेज सकता है लेकिन फोन के बंद किए जाने के बाद इसी स्पाईवेयर की मदद से सिग्नल ट्रैक किए जा रहे होते हैं। यह फिल्म नहीं सभी के लिए सबक भी है।
यह खतरा सामान्य यूजर्स के लिए आम नहीं है, लेकिन पत्रकार, एक्टिविस्ट, राजनीतिक हस्तियाँ, वकील और संवेदनशील क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों के लिए यह वास्तविक जोखिम पैदा कर सकता है। अनेक बार फोन उपयोगकर्ता को पता भी नहीं चलता कि किसी अन्य को उनका डेटा किस प्रकार से मिल रहा है, क्योंकि वह तो अपने फोन को बंद किए हुए थे। अब सवाल उठता है कि आखिर कैसे पहचाने की आपके फोन के साथ कुछ हुआ है। फोन ऑफ होने के बाद भी बैटरी का असामान्य रूप से गिरना, डिवाइस का अपने आप ही हल्का गर्म हो जाना, या अगली बार ऑन करने पर फोन का असामान्य व्यवहार, ये सब संकेत हो सकते हैं कि फोन सामान्य तरीके से बंद नहीं हुआ था। हालांकि ये लक्षण 100% स्पाइवेयर का प्रमाण नहीं हैं, लेकिन संदिग्ध परिस्थितियों में इनका संवेदनशीलता से विश्लेषण जरूरी है।
आज की तारीख में स्मार्टफोन को सही मायने में बंद’ करना भी अपने आप में एक चुनौती बन चुका है। कई विशेषज्ञ रिकवरी मोड से शटडाउन करने, या बेहद जरूरी होने पर एक साधारण फीचर फोन के इस्तेमाल की सलाह देते हैं क्योंकि इन डिवाइसों में स्मार्ट सेंसर नहीं होते और ऐसे में इनपर स्पाइवेयर की जटिल क्षमताएं काम नहीं कर पातीं। कुछ पुराने या विशेष सुरक्षा-केंद्रित फोन जिनमें रिमूवेबल बैटरी होती है, वे भी सबसे सुरक्षित ऑप्शन हो सकते हैं।
इन सभी बातों को अगर देखा जाए तो सबसे बड़ा सवाल यही उठता है कि कई मामलों में स्मार्टफोन बंद दिखने के बावजूद अंदर से एक्टिव रह सकता है, और यह वास्तविक दुनिया में संभव है। अगर फोन किसी हाई-लेवल निगरानी डिवाइस के साथ पहले से संक्रमित है तो वह आपकी जानकारी के बिना लो-पावर मोड में आपकी आवाज़ें, लोकेशन और गतिविधियाँ रिकॉर्ड कर सकता है। हालांकि, सामान्य स्थिति में ऐसा करना संभव नहीं है, फोन एक सुरक्षित डिवाइस है और यह आपको जासूसी नहीं करता है, कुछ स्पेशल मामलों में ऐसा हो सकता है। शायद इसीलिए ऐसा कहा जा रहा है कि सिर्फ फोन ऑफ करना हमेशा सुरक्षा की गारंटी नहीं है। डिजिटल सुरक्षा अब सिर्फ स्क्रीन लॉक या पावर बटन तक सीमित नहीं रही, यह एक डीप लेवल नॉलेज और सावधानी की मांग करती है।