आज के समय में स्मार्टफोन हमारी ज़िंदगी का अहम हिस्सा बन चुके हैं। दुनियाभर में 7 अरब से ज्यादा लोग इन डिवाइसेज़ पर कम्युनिकेशन, काम, एंटरटेनमेंट और कंटेंट बनाकर कमाई करने के लिए निर्भर हैं। हालांकि टेक्नोलॉजी में तेज़ी से हो रहे बदलाव और कंपनियों की अग्रेसिव मार्केटिंग के चलते लोग कई बार ऐसे झूठे दावों पर विश्वास कर बैठते हैं, जो उन्हें महंगे और गलत फैसलों की ओर ले जाते हैं। यहां हम आपको स्मार्टफोन से जुड़ी 5 आम गलतफहमियों के बारे में बता रहे हैं, जिन्हें अगला स्मार्टफोन खरीदने से पहले आपके लिए जानना आपके बेहद ज़रूरी है।
रैम स्मार्टफोन की शॉर्ट-टर्म मेमोरी होती है जो ऐप्स और प्रोसेसेज़ को रन करने में मदद करती है। आजकल 6GB से लेकर 16GB तक RAM वाले फोन बाज़ार में उपलब्ध हैं, लेकिन ज़्यादा RAM का मतलब हमेशा फास्ट परफॉर्मेंस नहीं होता।
असल में, RAM का काम सिर्फ एक साथ ज्यादा ऐप्स को बिना री-लोड किए एक्टिव रखना है। फोन की स्पीड में असली फर्क उसके प्रोसेसर की क्षमता और सॉफ्टवेयर की ऑप्टिमाइजेशन से आता है। एक अच्छा प्रोसेसर और स्मूद सॉफ्टवेयर वाला फोन अक्सर ज़्यादा RAM वाले कमजोर प्रोसेसर फोन से बेहतर चलता है। इसलिए सिर्फ RAM देखकर फोन न खरीदें, बल्कि प्रोसेसर और सॉफ्टवेयर पर ध्यान दें।
Snapdragon 8 Elite या Apple A18 Pro जैसे हाई-एंड प्रोसेसर सिर्फ हाई-परफॉर्मेंस और गेमिंग के लिए होते हैं। लेकिन अगर आप सिर्फ सोशल मीडिया, ब्राउज़िंग, चैटिंग और वीडियो देखने जैसे काम करते हैं, तो Snapdragon 7 सीरीज़ या MediaTek Dimensity 8000 सीरीज़ जैसे मिड-रेंज प्रोसेसर आपके लिए काफी हैं।
असल परफॉर्मेंस में सबसे बड़ा रोल सॉफ्टवेयर ऑप्टिमाइजेशन का होता है। एक मिड-रेंज चिप वाला फोन अगर अच्छे सॉफ्टवेयर के साथ आता है तो वह एक फ्लैगशिप फोन से ज्यादा स्मूद और बैटरी-फ्रेंडली हो सकता है। इसलिए फोन का चुनाव करते समय ज़रूरतों के हिसाब से करें, न कि सिर्फ चिपसेट देखकर।
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बहुत से लोग मानते हैं कि ज़्यादा मेगापिक्सल और ज़्यादा कैमरे बेहतर फोटो क्वालिटी देते हैं। लेकिन तस्वीरों की असल क्वालिटी सेंसर साइज, लेंस क्वालिटी और इमेज प्रोसेसिंग एल्गोरिथ्म पर निर्भर करती है।
कई बार स्मार्टफोन में एक्स्ट्रा कैमरे जैसे मैक्रो या डेप्थ सेंसर सिर्फ मार्केटिंग के लिए होते हैं। 200MP जैसे कैमरे भी अक्सर “पिक्सल बिनिंग” तकनीक से कम रेजोल्यूशन वाली तस्वीरें लेते हैं। Samsung Galaxy S25 Ultra जैसे फोन ज़रूर हाई-रेजोल्यूशन सेंसर का सही इस्तेमाल करते हैं, लेकिन वहाँ भी कैमरा डिज़ाइन और प्रोसेसिंग ज्यादा अहम होती है, न कि सिर्फ मेगापिक्सल।
120Hz डिस्प्ले, फास्ट चार्जिंग, मल्टी-कैमरा – ये सब सुनने में आकर्षक लगते हैं, लेकिन अगर सॉफ्टवेयर अच्छा न हो तो इनका कोई खास फायदा नहीं होता। स्मार्टफोन की परफॉर्मेंस का बड़ा हिस्सा सॉफ्टवेयर ट्यूनिंग, बैटरी मैनेजमेंट, हीट कंट्रोल और अपडेट पॉलिसी पर निर्भर करता है। एक अच्छे सॉफ्टवेयर वाला मिड-रेंज फोन कई बार स्पेसिफिकेशन से भरे फोन से ज्यादा भरोसेमंद होता है। फोन खरीदने से पहले केवल फीचर्स न देखें, बल्कि रिव्यू और अपडेट पॉलिसी पर भी नज़र डालें।
ज़्यादातर लोग सिर्फ खरीदते वक्त फोन के फीचर्स देखते हैं, लेकिन असली परेशानी तब शुरू होती है जब फोन में कोई दिक्कत आ जाए। कुछ ब्रांड्स की वॉरंटी पॉलिसी और सर्विस सेंटर नेटवर्क बेहद कमजोर होते हैं। इससे यूज़र्स को लंबे वेट टाइम, पार्ट्स की कमी या एक्स्ट्रा खर्च जैसी समस्याएं झेलनी पड़ती हैं। स्क्रीन, बैटरी या मदरबोर्ड जैसी खराबियां अगर सही समय पर ठीक न हों तो एक अच्छा फोन भी सिरदर्द बन सकता है। इसलिए किसी भी ब्रांड का चुनाव करने से पहले उसकी आफ्टर सेल्स सर्विस और कस्टमर केयर की रेपुटेशन ज़रूर चेक करें।
इन बातों को समझे बिना फोन खरीदना सिर्फ एक महंगा सौदा हो सकता है। समझदारी से सोचें, ज़रूरतों के अनुसार फोन चुनें और एक सही फैसला लें।
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