कल्पना कीजिए कि आप एक अनजान रास्ते पर गाड़ी चला रहे हैं, पूरी तरह से Google Maps के भरोसे, और अचानक आपकी स्क्रीन ब्लैंक हो जाए. या आपने कैब बुक की हो, लेकिन ड्राइवर को आपकी लोकेशन ही न मिले. चीन के एक बड़े शहर में हाल ही में ऐसा ही हुआ, लेकिन यह किसी एक व्यक्ति के साथ नहीं, बल्कि पूरे शहर के साथ हुआ.
पूर्वी चीन का एक प्रमुख शहर नानजिंग (Nanjing) करीब 6 घंटे के लिए ‘डिजिटल अंधेरे’ में डूब गया. वहां का पूरा सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम (GPS) ठप हो गया. टैक्सी सेवाएं रुक गईं, खाना समय पर नहीं पहुंचा और ड्रोन जमीन पर ही रह गए. यह घटना सिर्फ एक तकनीकी खामी नहीं, बल्कि भविष्य की इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर की एक डरावनी झलक हो सकती है.
इस घटना ने शहर के जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया. रोजमर्रा की जिंदगी से लेकर महत्वपूर्ण सेवाएं, जो सटीक पोजिशनिंग डेटा पर निर्भर करती हैं, सब ठप हो गईं.
Interesting Engineering की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस आउटेज ने उन सभी सिस्टम्स को अपंग बना दिया जो अमेरिकी जीपीएस (GPS) और चीन के अपने स्वदेशी बीडो (BeiDou) नेटवर्क पर निर्भर थे. यह बहुत बड़ी बात है क्योंकि आमतौर पर अगर एक सिस्टम फेल होता है, तो दूसरा बैकअप के तौर पर काम करता है, लेकिन यहां दोनों फेल हो गए.
इसका असर तुरंत और भयावह था. लोगों की गाड़ियों में लगे मैप्स ने काम करना बंद कर दिया. Uber और Didi जैसी कैब सेवाओं का बुरा हाल हो गया. ड्राइवर्स यात्रियों की लोकेशन नहीं ढूंढ पा रहे थे. रिपोर्ट के मुताबिक, ब्लैकआउट के दौरान राइड-हेलिंग के ऑर्डर्स में लगभग 60% की गिरावट आई.
खाना ऑर्डर करने वाले ऐप्स भी बुरी तरह प्रभावित हुए. डिलीवरी में लगभग 40% की देरी देखी गई क्योंकि डिलीवरी बॉयज को रास्ता ही नहीं मिल रहा था. ड्रोन ऑपरेशंस पूरी तरह से जमीन पर आ गए. सबसे अजीब स्थिति बाइक-शेयरिंग ऐप्स के साथ हुई. लोकेशन में इतनी गड़बड़ी थी कि कुछ ऐप्स बाइक की लोकेशन उनकी असली जगह से 35 मील (लगभग 56 किलोमीटर) दूर दिखा रहे थे.
निवासियों ने बताया कि वे अपने ही शहर में, जाने-पहचाने इलाकों में होने के बावजूद डिजिटल रूप से “खो” गए थे. ऐप्स में लोकेशन की सटीकता पूरी तरह खत्म हो चुकी थी.
शुरुआती तकनीकी जांच में मोबाइल नेटवर्क की किसी भी विफलता से इनकार किया गया. यानी इंटरनेट चल रहा था, टावर काम कर रहे थे, लेकिन सैटेलाइट सिग्नल गायब थे. जांच की सुई सैटेलाइट सिग्नल रिसेप्शन में व्यवधान की ओर इशारा कर रही थी.
बाद में, नानजिंग सैटेलाइट एप्लिकेशन इंडस्ट्री एसोसिएशन ने पुष्टि की कि यह घटना जीपीएस और बीडो सिग्नल्स पर “अस्थायी इंटरफेरेंस और प्रेशर” के कारण हुई थी. इसको आसान भाषा में कहें तो, किसी ने जानबूझकर या किसी वजह से सिग्नल्स को ‘जैम’ कर दिया था, जिससे स्मार्टफोन और नेविगेशन डिवाइस विश्वसनीय सैटेलाइट डेटा प्राप्त नहीं कर पा रहे थे.
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अधिकारियों ने इस हस्तक्षेप के स्रोत (Source) या उद्देश्य का खुलासा नहीं किया. इससे यह अटकलें तेज हो गई हैं कि शायद किसी संवेदनशील घटना या वीआईपी मूवमेंट के दौरान सुरक्षा उपायों के तहत सिग्नल्स को जानबूझकर सप्रेस किया गया था.
जैसे ही Interference बंद हुआ, नेविगेशन सेवाएं धीरे-धीरे सामान्य हो गईं, लेकिन इस घटना ने एक्सपर्ट्स को बेचैन कर दिया है. एक्सपर्ट का कहना है कि जीपीएस (अमेरिकी) और बीडो (चीनी) दोनों का एक साथ ठप होना कोई साधारण तकनीकी गड़बड़ी नहीं हो सकती. यह एक उच्च स्तर के समन्वय का संकेत देता है.
कुछ लोग इसे एक चेतावनी के रूप में देख रहे हैं. यह दर्शाता है कि भविष्य में चीन और अमेरिका के बीच किसी भी टकराव की स्थिति में सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम को कैसे निशाना बनाया जा सकता है. इसे एक रणनीतिक प्लेबुक का हिस्सा माना जा रहा है, जहां एक सिस्टम में हस्तक्षेप दूसरे सिस्टम्स को भी प्रभावित कर सकता है.
इस तरह की घटना का असर सिर्फ चीन तक सीमित नहीं है. इसने भारत जैसे देशों में तैयारियों को लेकर नए सवाल खड़े कर दिए हैं. भारत में भी दैनिक जीवन, परिवहन नेटवर्क और लॉजिस्टिक्स चेन अब पूरी तरह से सैटेलाइट नेविगेशन पर निर्भर हैं. भारत एक मिक्स सिस्टम पर निर्भर करता है. भारत के पास ग्लोबल सिस्टम्स: GPS (अमेरिका), GLONASS (रूस), Galileo (यूरोप) और BeiDou (चीन) और अपना सिस्टम: NAVIC (NavIC – Navigation with Indian Constellation) मौजूद हैं.
सोचिए अगर भारत में अचानक बड़े पैमाने पर नेविगेशन ब्लैकआउट हो जाए तो क्या होगा? विमानन (Aviation), शिपिंग, ऐप-आधारित डिलीवरी (Zomato/Swiggy/Uber) और यहां तक कि आपातकालीन प्रतिक्रिया (Ambulance/Police) सब कुछ ठप हो सकता है.
विशेषज्ञों का तर्क है कि इस तरह के खतरों से बचने का एकमात्र तरीका “रेडंडेंसी” (Redundancy) है—यानी एक विकल्प मौजूद रखना. ऐसे डिवाइस जो कई सैटेलाइट तारामंडलों (Constellations) से सिग्नल ले सकते हैं, वे आंशिक आउटेज का सामना करने में बेहतर होते हैं. अगर GPS फेल हो, तो वे NAVIC या GLONASS पर शिफ्ट हो सकें.
अस्थायी समाधान के रूप में प्री-डाउनलोडेड मैप्स (Offline Maps) बहुत काम आ सकते हैं. कुछ वाहनों और मानव रहित प्रणालियों को अब स्थानीय या सेलुलर टॉवर-आधारित पोजिशनिंग तकनीकों से लैस किया जा रहा है, जो सैटेलाइट फेल होने पर काम आ सकें.
भारत का अपना NAVIC सिस्टम एक रणनीतिक सुरक्षा कवच है. यह भारत की सीमाओं के भीतर और 1,500 किलोमीटर के दायरे में सटीक स्थिति प्रदान करता है. क्षेत्रीय संकट या युद्ध की स्थिति में, जब विदेशी देश (जैसे अमेरिका या चीन) अपना GPS या BeiDou बंद कर सकते हैं, तब NAVIC भारत की आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करेगा. जब इसे अन्य वैश्विक प्रणालियों के साथ मिलाया जाता है, तो यह किसी एक नेटवर्क पर निर्भरता को कम करता है.