यह फिल्म अमृता की कहानी है, जिसमें वो एक हाउस वाइफ का रोल प्ले करती है. इसमें अमृता के पति विक्रम का करियर अहम मोड़ पर होता है, लेकिन एक पार्टी के दौरान वह अमृता को सबके सामने थप्पड़ मार देता है. यह एक थप्पड़ अमृता को सोचने पर मजबूर कर देता है, जिससे वह तलाक का फैसला लेती है और अपनी खुद की पहचान तलाशने निकल पड़ती है,
यह कहानी सीनियर इंस्पेक्टर शिवानी शिवाजी रॉय (रानी मुखर्जी) की है, जो लड़कियों की तस्करी करने वाले गिरोह का पर्दाफाश करती है. जब इसमें एक छोटी लड़की किडनैप हो जाता है, तो शिवानी इस गिरोह के मास्टरमाइंड करण (ताहिर राज भसीन) तक पहुंचती है और उसे सजा दिलाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक देती है.
यह कहानी तीन लड़कियों – मीनल फलक और एंड्रिया की है, जो एक प्रभावशाली व्यक्ति के बेटे राजवीर (अंगद बेदी) पर छेड़छाड़ का आरोप लगाती हैं. लेकिन समाज उन्हें ही दोषी ठहराता है, लेकिन दीपक सहगल (अमिताभ बच्चन) नाम का वकील उनका केस लड़ता है और साबित करता है कि "ना का मतलब ना", चाहे लड़की किसी भी परिस्थिति में हो.
यह फिल्म सागरिका भट्टाचार्य की सच्ची कहानी पर आधारित है. इसमें एक भारतीय मां (रानी मुखर्जी) की कहानी दिखाई गई है, जिसका बच्चा नॉर्वे सरकार छीन लेती है क्योंकि उनके पालन-पोषण के तरीके वहां के नियमों के अनुसार नहीं होते. वह अकेले ही कानूनी लड़ाई लड़ती है और अपने बच्चों को वापस पाने के लिए संघर्ष करती है.
यह फिल्म एक महत्वाकांक्षी क्रिकेटर अंशु (सैयामी खेर) की कहानी है, जो एक दुर्घटना में अपना दायां हाथ खो देती है, और उसका सपना टूट जाता है, लेकिन कोच पद्म सिंह सोढ़ी (अभिषेक बच्चन) उसे नया जीवन देने का प्रयास करता है. अंशु बाएं हाथ से खेलने की कला सीखती है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलकर अपने जज्बे को साबित करती है.
यह फिल्म एक पूर्व कबड्डी खिलाड़ी जया निगम (कंगना रनौत) की कहानी है, जो शादी और बच्चे के बाद अपने सपनों को भूल चुकी होती है. इसमें उसका पति और बेटा उसे दोबारा कबड्डी में लौटने के लिए प्रेरित करते हैं, जया अपनी उम्र और जिम्मेदारियों के बावजूद मैदान में वापसी करती है और अपने सपनों को पूरा करती है.
यह भारतीय वायुसेना की पहली महिला पायलट गुंजन सक्सेना (जान्हवी कपूर) की बायोपिक है, जिन्होंने कारगिल युद्ध (1999) के दौरान दुश्मनों के इलाके में घुसकर घायल सैनिकों को बचाया था. इस फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे गुंजन को लैंगिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है.
गंगा के किनारे चार जिंदगियां एक-दूसरे से मिलती हैं: एक निम्न जाति का लड़का जो प्यार में पूरी तरह से डूबा हुआ है, एक बेटी जो एक यौन संबंध के दुखद अंत के अपराध बोध से ग्रस्त है, एक अभागा पिता जिसकी नैतिकता खत्म हो रही है, और एक उत्साही बच्चा जो एक परिवार की चाहत रखता है, जो एक छोटे शहर की नैतिक संरचनाओं से बचना चाहता है.